चुदाई का लंबा सफर

Discussion in 'Hindi Sex Stories' started by 007, Dec 1, 2017.

  1. 007

    007 Administrator Staff Member

    //8coins.ru hindi chudai ki kahani अरुण से मेरी दोस्ती इसलिए भी हो गई कि हम दोनों एक ही शहर जयपुर से हैं, तो एक दूसरे को मेल करने का सिलसिला शुरू हुआ और उस कहानी को जबरदस्त रेस्पोंस भी मिला, मेरा मेल हजारों मेल से भर गया, सभी लोग मुझसे दोस्ती और मुझे चोदना चाहते थे।

    यदि वो चुदाई का सिलसिला यूँ ही चलता रहता तो मैं हमेशा पलंग पे नंगी ही पड़ी रहती लेकिन मैं दोस्ती के और मेल के मज़े लेने उन्हें जवाब देने में बिज़ी हो गई।

    और फिर मुझे इस अरुण के सेक्सी सेक्सी मेल में रस आने लगा और सेक्स चैट में न जाने कितनी बार में गीली हो गई।

    चूंकि एक गृहणी हूँ तो मेरा यह नियम है सख्ती से कि किसी को भी अपना फोन न. नहीं देती हूँ।

    लेकिन साले इस अरुण ने इतनी ज्यादा सेक्सी इतनी ज्यादा सेक्सी चैट की कि मुझे उत्तेजना के उन पलों में टाइप करके मेसेज भेजना और पढ़ना रास नहीं आया और हम फोन सेक्स पर आ गए।

    अरुण ऑफिस टाइम में अपनी कार में आ जाता और मैं सबके चले जाने के बाद अपना कमरा बंद कर के अरुण के साथ फोन पर ही चुदाई के भरपूर मज़े लेने लगी और पूर्ण निर्वस्त्र पड़ी होकर कान में इयरफोन लगा के अपने हाथों से ही अपने वक्ष और अपनी चूत का मर्दन करती रहती।

    लेकिन सेक्स वो चिंगारी है जो एक बार सुलगने के बाद कब भयंकर आग में (काम वासना की आग) में बदल जाती है, पता ही नहीं चलता, यही मेरे साथ भी हुआ, चूंकि हम एक ही शहर से थे और वो हमेशा ही मुझ से मिलने की ज़िद करता रहता था पर मैं टालती जा रही थी।

    लेकिन फोन सेक्स पर वो मेरे साथ जिस तरह के फॉर-प्ले का जिक्र करता, अलग अलग तरह से चुदाई करता, उसे सुन सुन कर मेरे मन में भी कहीं न कहीं उससे मिलने की चाहत जागने लगी।

    वो भी शादीशुदा और परिवार वाला था तो मुझे यह डर भी नहीं था कि वो मेरे पीछे ही पड़ जाएगा और उसे फोन नम्बर देकर मैं उसे आज़मा चुकी थी क्यूंकि अरुण खुद मुझे हर कभी फोन नहीं करता था, जब मैं उसे मिस काल देती, तभी वो फोन करता था, मुझे उसकी यह बात पसंद आई।
    फिर हमने मिलने का निश्चय किया और हम जयपुर के एक शॉपिंग माल में मिले।

    मैं वहाँ शॉपिंग के लिए गई थी, अरुण से रु-बरु मिलना बहुत ही उत्तेजक लग रहा था।

    मैंने उसे अपने बहुत से फ़ोटो मेल किये थे, इसलिए वो मुझे तुरंत ही पहचान गया, और मैंने भी उसके बहुत से फ़ोटो देखे थे तो समझ गई कि यही है मेरा नया हीरो, उसका व्यक्तित्व बहुत खुशनुमा और आकर्षक था और मैं भी कुछ कम नहीं हूँ, वो मुझे देखते ही फ़िदा हो गया।

    उसने जानबूझ कर मुझ से हाथ मिलाया, मैं मर्द की जात को भली भांति जानती हूँ, वो किसी न किसी बहाने औरत को छूना चाहते हैं, यही उसने भी किया।

    फिर हमने एक जगह सॉफ़्टी आइस क्रीम खाई, वो एकटक मुझे निहारे ही जा रहा था, और में उसकी इस स्थिति के मज़े ले रही थी, कभी अपने बालों को झटक के और कभी अपनी ड्रेस ठीक करके !

    फिर मैंने उसके और मज़े लिए मैंने सॉफ़्टी प्र ऐसे जीभ फिरानी शुरू की जैसी कि लंड के सुपारे पे फिराते हैं और उसे ऐसे चूसने लगी जैसे ब्लू फिल्म्स में लंड को चूसते हैं।

    वो भी समझ गया और मुस्करा कर मेरे गाल दबा के बोला- तुम सॉफ़्टी ऐसे ही खाती हो?

    मैं इतरा कर बोली- अब ऐसी ही आदत पड़ गई है।

    और ये कहते हुए पूरी सॉफ़्टी को निगलने का उपक्रम किया, वो पागल ही हो गया।

    और मैं उसकी हालत देख कर हंस पड़ी। इस प्रयास में मेरे होंठ पर काफी सारी सॉफ़्टी लग गई, मैं उसे साफ़ करती, उससे पहले ही अरुण ने खुद अपनी उंगली मेरे होंठों पर रख दी और उत्तेजक तरीके से मेरे होंठों को दबाते हुए और मसलते हुए पूरी सॉफ़्टी साफ़ कर दी।

    उसका यह मादक स्पर्श बहुत ही उत्तेजक लगा मुझे, और मुझे अपनी चूत तक में हलचल महसूस हुई, मेरे होंठों की पूरी क्रीम उसकी उंगली पर लगी हुई थी, मैंने उसे साफ़ करने के लिए उसे नेपकिन दिया लेकिन उसने बहुत ही कामुक अंदाज़ में उस उंगली को अपने मुँह में डाल लिया और ऐसे चूसा जैसे उसने मेरी गीली चूत में अंदर तक उंगली घुसा कर चूत के रस में संधी हुई अपनी उंगली को चूसा हो।

    उसका यह कामुक अंदाज़ देख कर मेरे तन बदन में सिरहन सी दौड़ गई और मुझे लगा कि अब मुझे चलना चाहिए वरना इस बन्दे के साथ कुछ देर और रुक गई तो यह मेरी पूरी कच्छी गीली कर देगा।

    मैंने कहा- अब मुझे चलना चाहिए!

    और वो मुझे अपनी कार में घर छोड़ने को बोलने लगा लेकिन मैं उसे अभी इतनी जल्दी अपना घर नहीं बताने वाली थी, इसलिए मना कर दिया और ऑटो करके घर आ गई।

    अरुण मेरा बहुत दीवाना बन गया था, यह बात तो मुझे उसके फोन सेक्स और उसकी बातों से मालूम ही थी लेकिन इस मुलाक़ात के बाद हुआ यह कि मैं उसकी ज्यादा दीवानी बन गई।

    उसके व्यक्तित्व से अब मैं बहुत ज्यादा प्रभावित हो चुकी थी, उसमें सेक्स आकर्षण के अलावा सेन्स ऑफ़ ह्यूमर भी बहुत अच्छा था, उसने मुझे उस मुलाक़ात के दौरान खूब हंसाया भी और यह बात तो आप लोगों को भी मालूम होगी जो उसकी कहानियाँ पर पढ़ते हैं, अरुण की कहानियों में सेक्स के साथ हास्य का भी तड़का रहता है।
    अब वो मुझसे अकेले में मिलने की ज़िद करने लगा, मर्द की जात ऐसी होती है कि उनका मन सिर्फ सेक्सी बातों, मेल मुलाक़ात, छूने, चूमने से नहीं भरता, उन्हें सेक्स चाहिए, और यहाँ तो ऐसा मामला था कि मैं खुद भी अब उसके साथ सम्भोग के मज़े लेना चाहती थी,

    अब बस हमे मौके और जगह की तलाश ही थी।

    और वो मौका ऐसा मिलेगा और हम ऐसी अजीबो-गरीब स्थिति में सेक्स करेंगे, यह हमने सोचा ही नहीं था।

    हुआ यूँ कि मुझे अजमेर यूनिवर्सिटी में किसी छोटे से काम से अजमेर जाना था, यह बात मैंने उसे बताई थी कि मैं फोन पर नहीं मिलूँगी।

    जयपुर से अजमेर ज्यादा दूर नहीं है, और मेगा एक्सप्रेस हाइवे की वजह से आने जाने में टाइम भी नहीं लगता, मुझे उम्मीद थी कि मैं अपना काम निपटा कर 7-8 घंटे में वापिस भी आ जाऊँगी, पड़ोसन को बोल दिया था कि वो स्कूल से आने के बाद बेटे को कुछ देर संभाल लेगी।

    जब उसे यह बात पता चली तो वो बोला- मैं तुम्हें अजमेर ले चलता हूँ, कार से तो हम और भी जल्दी वापिस आ सकते हैं।

    यह बात मुझे जंच गई, हालांकि मुझे यह अंदेशा था कि वो कार में मेरे साथ कुछ गड़बड़ कर सकता है, लेकिन दोस्तो, मेरा खुद का मन ही मचल रहा था अब, तो मैंने उसे हाँ कर दी और सुबह बेटे को स्कूल के लिए रवाना कर के मैं खुद तैयार होने लगी।

    मैंने अपने आप को आईने में देखा, भगवान ने मुझे बहुत ही सुन्दर बनाया है, मेरा बदन सेक्सी और फिगर तो मर्दों की जान लेने वाला है, मेरा बदन 34-26-36 है, गोल चेहरा, फूले फूले गाल, जिसे अक्सर सेक्स के समय लोग बहुत ज्यादा खींचते हैं, गोरा रंग, काले बाल और नीली आँखें !

    मैंने देखा है कि लोग, चाहे मर्द हो या औरत, मैं जब भी बाहर जाती हूँ, मुझको ही देखते रहते हैं। मुझे पता है कि जब भी मैं चलती हूँ, मेरे गोल गोल चूतड़ बहुत ही प्यारे सेक्सी अंदाज़ में मटकते हैं और मेरी तनी हुई चूचियाँ तो सोने पर सुहागा हैं जो किसी भी मर्द को पागल बना देने के काबिल हैं।

    और सब से खास बात, मैं हमेशा ही अच्छे, मेरे सेक्सी बदन को सूट करने वाले कपड़े पहनती हूँ। मैं अपना बदन ज्यादा नहीं दिखाती, पर जितना भी दिखता है, आप समझ सकतें है कि क्या होता होगा। मैं मन ही मन मुस्करा देती हूँ जब मर्द लोग चुदाई की भूख अपनी आँखों में लिए और लड़कियाँ, औरतें जलन से मुझको देखती हैं। मैं भगवान को हमेशा बहुत बहुत धन्यवाद देती हूँ कि उसने मुझे इतना सुन्दर बनाया और मैं हमेशा अपने शरीर का ध्यान रखती हूँ, मैं रोज़ योग करती हूँ और जरूरी कसरत करती हूँ ताकि मेरा बदन हमेशा ऐसा ही रहे।

    क्यूंकि चुदाई मुझे बेहद पसंद है और आज तो मुझे जाने के पहले से साफ़ साफ़ पता था कि कुछ न कुछ तो होगा, यह मुझे अंदेशा था, इसलिए मैंने अरुण की सुविधा के लिए उस दिन नाड़े वाले सलवार की बजाये इलास्टिक वाली लेगिंग पहनी, जो आसानी से खिसक सकती थी, ऊपर एक ढीला सा टॉपर डाल लिया और अपनी ब्रा का सबसे पहला वाला हुक लगाया ताकि अरुण यदि रास्ते में मेरे वक्ष मसलना, दबाना चाहे तो न उसे कोई परेशानी हो न मुझे।
    परफ्यूम लगाने के लिए उसने मना किया था क्यूंकि इसकी खुशबू उसके जिस्म में काफी देर तक रह सकती थी, जो वो नहीं चाहता था।

    पूरी तरह से टिप टॉप हो कर मैंने अपने आप को शीशे में निहारा, मैं मस्त लग रही थी, फिर गॉगल लगाया।

    उस दिन जयपुर में सुबह से ही बारिश का मौसम हो रहा था, घने बादल छाये हुए थे और दिन में भी अँधेरे का ही अहसास हो रहा था, हल्की हल्की बूंदा बांदी तो शुरू भी हो गई थी।

    मैंने मन ही मन सोचा कि अच्छा है कि अरुण की कार से जा रही हूँ, ऐसे ख़राब मौसम में बस या ट्रेन से जाने में परेशानी होती

    और फिर रास्ते में कुछ सेक्सी सा होने की उम्मीद मेरे तन-बदन में आग लगाए हुई थी।

    पास की चौराहे पर पहुँच कर उसे फोन किया, वो तुरंत ही आ गया शायद वो काफी पहले से ही आस-पास आ गया होगा।

    अरुण मेरा जबरदस्त दीवाना बन गया था पिछले 5-6 महीनो से।
    मैं जैसे ही कार में उसके पास बैठी, उसने मेरे गाल चूम के मेरा स्वागत किया, बोला- बहुत सुंदर और सेक्सी लग रही हो।

    मैंने उसे उसकी सीट पर धकेलते हुए कहा- प्लीज़ चलो यार, पहले शहर से बाहर तो निकलो !
    और हम चल पड़े।

    हम अब हाइवे पर थे और फिर से बरसात शुरू हो गई थी, इस बार जोर से.. तेज बरसात के कारण बाहर अँधेरा हो गया था, मैं अपना सिर उसके कंधे पर रख कर बैठी हुई थी और बाहर हो रही बरसात मुझे सेक्सी बना रही थी, गर्म कर रही थी।

    वो बहुत सावधानी से कार चला रहा था। बारिश की वजह से रास्ते पर बहुत कम वाहन थे और यह हमारे लिए बहुत ही अच्छा था।

    उसने मेरे गाल पर चुम्बन लिया तो मैं अपना आपा खोने लगी, मैंने भी उसके गाल को चूमा।

    गाड़ी चलते हुए उस ने मेरी चूचियों को दबाया, मैं जो चाहती थी, वो हो रहा था।
    उसने फिर एक बार मेरी चूचियों को दबाया और मसला, इस बार जरा जोर से।
    चलती गाड़ी में जितना सम्भव था, उतना मैं उससे चिपक गई। अब मेरी चूचियाँ उसके हाथ पर रगड़ खा रही थी।

    मैंने उसके शर्ट के ऊपर का बटन खोल दिया, मेरी उँगलियाँ उसकी चौड़ी, बालों भरी छाती पर, उसकी मर्दाना निप्पल पर घूमने लगी। अरुण की छाती पर खूब बाल हैं, यह मुझे पहले से ही मालूम था, और मर्द के छाती के बाल मुझे बहुत ही ज्यादा पसन्द हैं इसलिए मैं उसके कंधे पर सर टिकाये उसके निप्पल को मसलने लगी और मैंने महसूस किया कि उसकी निप्पल मेरे सेक्सी तरीके के कारण कड़क हो गई थी।
    मैंने एक के बाद एक, उसकी दोनों निप्पलों को मसला तो उसको मज़ा आया।

    मैंने नीचे देखा तो पाया कि उसकी पैंट के नीचे हलचल हो रही थी मुझे शरारत सूझी और मैं मुस्कराते हुए उसकी निप्पल को छोड़ कर अपना हाथ नीचे ले गई।

    मेरा एक हाथ उसकी गर्दन के पीछे था और मेरी चूचियाँ अभी भी उसके हाथ पर रगड़ खा रही थी, अब मेरा दूसरा हाथ उसकी पैंट के ऊपर, उसके तने हुए लण्ड पर था, उसके दोनों हाथ अभी तक स्टीयरिंग में बिज़ी थे लेकिन अब हम मेगा हाई-वे पर थे तो और कार एक ही गीयर में और आराम से चल रही थी, उसने स्पीड भी लिमिट में रखी हुई थी तो उसने भी अपना एक हाथ फ्री करते हुए मेरी जांघों के बीच में रख दिया था, और मेरा हाथ उसके पैंट के उभार पर था जिसमें उसका लण्ड फँस रहा था इसलिए उसने अपने पैरों की पोज़िशन ऐसी बना ली कि वो कार चलाता रहे और मैं उसके लौड़े से खेलती रहूँ।

    मैं उसका खड़ा हुआ लण्ड मसल रही थी और उसको बाहर निकालना चाहती थी। मैंने उसकी जिप खोली तो उसने भी अपने खड़े हुए लण्ड को चड्डी से बाहर निकालने में मेरी मदद की।

    कितना सुन्दर लण्ड है मेरे प्रेमी का. गहरे भूरे रंग का, करीब 7 इंच लम्बा होगा वो और शायद 3 इंच मोटा, तुम सोच रहे होंगे कि शालिनी को लण्ड की बड़ी पहचान है?
    हा हा. हा हा.
    हाँ दोस्तो, यह बात सही है कि मुझे लण्ड की सही में बहुत ज्यादा पहचान है, अरुण का कड़क लण्ड, काफी कुछ बाहर निकल आया था गर्म, सख्त और मज़बूत। उसके लण्ड के सुपाड़े पर चमड़ी नहीं है इसलिए उसका पूरा गुलाबी सुपाड़ा बाहर की तरफ उभरा हुआ था और ऐसा लण्ड मुझे बहुत प्यारा लगता है।
    मुझे उसके मर्दानगी भरे लण्ड को देखना और सहलाना अच्छा लग रहा था।
    उसके लण्ड के सुपाड़े पर छेद पर पानी की एक बूँद आ गई थी जो आप जानते हैं यह चुदाई के पहले का पानी है जिसे प्री-कम कहते हैं।
    उसने भी कार चलाते हुए मेरी चूत पर मेरी लेगिंग के ऊपर से ही हाथ फिराया जिससे मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी और हमेशा की तरह मेरी चूत ने भी रस निकालना चालू कर दिया।

    मुझे अरुण की एक बात और अच्छी लगी, वो यह कि जैसे उसका लण्ड कड़क हुआ तो वो और भी ज्यादा सावधानी से कार ड्राइव करने लगा।

    मैंने धीरे से उसके खड़े लण्ड को पकड़ कर हिलाया, मेरे छूने से उस का कड़क लौड़ा और भी सख्त हो गया।

    बाहर हो रही बरसात हमारी भावनाओं को भड़का रही थी और हम चलती कार में हमारा पसंदीदा काम करने लगे।
    मैंने अरुण की आँखों में देखा तो उनमें मेरे लिए प्यार के सिवाय कुछ और नहीं था।

    मैंने उसके लण्ड को पकड़ कर ऊपर नीचे करना शुरू किया, कुछ समय बाद मैंने अपना सिर नीचे करके उस के तनतनाते हुए लण्ड को अपने मुंह में लिया।
    मैं अपनी जीभ उसके लण्ड मुंड पर घुमा कर उसके पानी का स्वाद लिया। उसका लण्ड चूसते हुए भी चलती कार में मेरा मुठ मारना लगातार चालू था। मुझे पक्का था कि कोई भी बाहर से नहीं देख सकता था कि अन्दर चलती कार में हम क्या कर रहे है।
    कार के शीशे गहरे रंग के थे और बाहर बरसात होने की वजह से वैसे भी अँधेरा था।

    बाहर बरसात और तेज होने लगी थी जो कार में हम दोनों को गर्म, और गर्म, सेक्सी बना रही थी।

    मैं एक बार तो घर पर डॉक्टर और उसकी कामवाली को देख कर अपनी चूत अपनी ही उंगली से चोद चुकी थी और अब मैं चाहती थी कि लण्ड और चूत के मिलन से पहले उसके लण्ड को भी हिला हिला कर, मुठ मार कर उसके लण्ड का रस भी निकाल दूँ।

    कार की छोटी जगह में झुक कर उसके लण्ड को चूसने में तकलीफ हो रही थी क्योंकि हिलने जगह बहुत ही कम थी।
    उसने भी इस बात को समझा और मैं सीधी हो कर बैठ गई।
    उसने फिर मेरी चूचियों को मसला और दबाया, मेरी चूत पर हाथ फिराया, मैंने बैठे बैठे उसके लण्ड को कस कर पकड़ा और शुरू हो गई, जोर जोर से मुठ मारने का काम करने को।

    वो भी बार बार मेरी चूचियों से खेल रहा था, दबा रहा था, मसल रहा था और मेरी चूत पर भी हाथ फिरा रहा था।

    चुदाई की, सेक्स की गर्मी बढ़ती गई, हम दोनों को ही मज़ा आ रहा था। मैं सोच रही थी कि उस के लण्ड का पानी जब निकलेगा, तब कार में, उसके कपड़ों पर फ़ैल जाएगा।
    मुझे पता है कि लण्ड, बहुत दूर तक, बहुत तेजी से और बहुत सारा पानी निकालता है। मैं उसके लण्ड की मुठ मारने का काम कर रही थी और उसने कार में पड़ा छोटा तौलिया अपने हाथ में ले लिया।
    मैं समझ चुकी थी कि अब अरुण ज्यादा देर अपना स्खलन रोक नहीं पायेगा और यह तौलिया उसने लण्ड से निकलने वाले पानी को फैलने से रोकने के लिया है।
    वो कार चला रहा था और मैं उस के लण्ड पर मुठ मार रही थी, मुठ मारते मारते मैंने उसके लण्ड में और ज्यादा सख्ती, उसके लण्ड की नसें बहुत ज्यादा उभर आई थी, अब तो मुझे पता चल गया कि उसका पानी निकलने वाला है।
    एक हाथ से वो ड्राइव कर रहा था और एक हाथ में अपने लण्ड के पास तौलिया पकड़े हुए था।
    अचनक उसके मुंह से निकला 'ऊऊह शालिनीइइइइ' और उसने तौलिया अपने लण्ड के मुंह पर रखा।
    मैंने जल्दी से तौलिया पकड़ कर उसके लण्ड पर लपेट दिया और फिर से उसके लण्ड को तौलिये के ऊपर से पकड़ लिया। उसका लण्ड पानी छोड़ने लगा जो तौलिये में जमा होता जा रहा था।
    पानी निकालते हुए उसका लण्ड मेरे हाथ में नाच रहा था। मैं उसके लण्ड को कस कर पकड़े रही। उसके चेहरे पर संतोष के भाव थे और मैं खुश थी कि मैंने अच्छी तरह से मुठ मार कर उसके लण्ड को शांत किया था।
    मैंने तौलिये से उके लण्ड को साफ़ किया और फिर उसने अपने लण्ड के पानी से भीगा हुआ तौलिया चलती कार से बाहर गीली सड़क पर, थोड़ी सी खिड़की खोल कर फ़ेंक दिया।
    जब उसने खिड़की खोली तो पानी की कुछ बूँदें अन्दर आई, हमें अच्छा लगा।
    उसका लण्ड अभी भी आधा खड़ा, आधा बैठा था, न ज्यादा कड़क, न ज्यादा नर्म। आप जानते हैं कि हमेशा ही खड़े लण्ड को थोड़ी कोशिश के बाद चड्डी और पैंट से बाहर निकाला जा सकता है, पर खड़े लण्ड को वापस चड्डी और पैंट में डालना मुश्किल है।
    नर्म लण्ड को आसानी से वापस कपड़ों के अन्दर डाला जा सकता है।
    उसने वापस अपना नर्म लण्ड अपनी जिप के अन्दर, पैंट में, चड्डी में डाल लिया।

    मेरी चूत भी पानी छोड़ चुकी थी और अंदर सब कुछ गीला गीला हो गया था, मेरी चूत के होंठ और जांघों का जोड़ उस चिकनाई की वजह से आपस में फिसलने लगे थे।

    अरुण तो एक बार स्खलित होने से रिलेक्स हो गया था लेकिन मेरी चूत में आग लग गई थी और मुझे चुदवाने की जबरदस्त इच्छा होने लगी।
    और अजमेर तो अभी काफी दूर था, मैंने अरुण से कहा- प्लीज़ यार, मुझे चुदाई चाहिए अभी, कैसे भी करो, कुछ भी करो।
    मैंने उससे कहा- क्या हम हाइवे पर कार में चुदाई कर सकते हैं?
    तो उसने मुस्करा कर जवाब दिया- अगर मैं तुमको हाइवे पर कार में चोदूंगा और इस मौसम और अँधेरे में कोई मेरी कार की पीछे से गाण्ड मार देगा तो?

    मैं उसकी बात सुन कर हंस पड़ी लेकिन अपनी बात पर अड़ गई।

    अरुण बोला- यार, अब ऐसे किस होटल में चलें, यहाँ कोई भी ऐसा सेफ होटल नहीं है और शालिनी तुम्हारी हालत ऐसी हो रही है कि सब देखते ही समझ जाएँगे कि हम चुदाई के लिए कमरा ले रहे हैं, और जानू तुम्हें तो मालूम है कि देश का आजकल क्या हाल हो रहा है, गड़बड़ लोग मिल गए न तो, वो मुझे बाँध के पीट के तुम्हारे साथ सामूहिक बलात्कार कर सकते हैं, प्लीज़ जानू, कंट्रोल करो अपनी चूत को।

    मैं गुस्से में बोली- साली यह चूत मेरे कंट्रोल में होती तो क्या मैं चुदक्कड़ शालिनी होती, मुझे साली इस चूत ने ही तो बिगाड़ा है जो आज मैं तुम्हारे साथ इस कार में हूँ, प्लीज़ कुछ करो यार अरुण !

    'ओके !' अरुण बोला- मौसम ऐसा है तो क्यों न कार में ही चुदाई की जाए।
    मैं मान गई कार में चुदवाने को क्योंकि मैंने कभी कार में नहीं चुदवाया था, मैं भी कार में चुदवाने का अनुभव लेना चाहती थी।
    मुझे हमेशा अलग अलग पोजीशन में, अलग अलग जगह में चुदवाने में बहुत मज़ा आता है।

    अरुण को अजमेर के रास्ते का अच्छा खासा आईडिया था, वो यहाँ आता जाता रहता था, तो वो कोई सुरक्षित जगह देखने लगा और मुझे बोला- रानी, एक जगह है आगे बहुत मस्त, जहाँ हम दोस्तों ने एक बार पिकनिक की थी, बीयर वगैरा पी थी।

    और फिर कोई 2-3 किमी आगे आने के बाद वो बोला- लो डार्लिंग, आ गई अपनी मंज़िल !
    और उसने कार हाइवे से नीचे उतार कर पेड़ों के झुण्ड की तरफ बढ़ा दी। आखिर उसने कार वहाँ खड़ी की जहाँ चारों तरफ घने पेड़ थे। मैंने देखा कि हमारी कार दो बड़े पेड़ों के बीच खड़ी थी। हम हाइवे से ज्यादा दूर भी नहीं थे और वो रास्ता ऐसा था कि हाईवे से कोई और हमारी तरफ आता तो सबसे पहले वो हमें दिखाई दे जाता और हम कार स्टार्ट करके उससे पहले ही वहाँ से रवाना हो सकते थे। मुझे अरुण की सेक्स को लेकर यह सावधानी और समझदारी, बहुत पसंद आई क्यूंकि सेक्स करते समय मन में कोई डर या वहम नहीं होना चाहिए, तभी चुदाई का मज़ा आता है।
    और यह जगह इस हिसाब से बहुत मस्त थी, क्यूंकि यहाँ आते ही मेरी चूत में खलबली सी मच गई जैसे कि वो और मैं किसी बैडरूम में चुदाई के लिए आ गये हों।
    यहाँ पर चारों तरफ पानी भरा था, बड़े बड़े पेड़ों के बीच हमारी नीली कार को इस मौसम में और घने बादलों की वजह से दिन में ही अँधेरे का सा अहसास था तो ऐसे में हाइवे से देख पाना संभव नहीं था।
    यह एक बहुत महफूज़ जगह थी, पहली बार कार में चुदाई करने के लिए।

    भारी बरसात लगातार हो रही थी और हम बड़ी बड़ी पानी की बूंदों को हमारी कार की छत पर गिरते हुए सुन सकते थे।

    वहाँ पहुँचते ही अरुण ने मुझे बाहों में भर लिया और कस के मेरे होठों पर एक लंबा सा चुम्बन करने लगा- शालिनी माय डार्लिंग, पूरे साल भर के प्रयास और मिन्नतों के बाद आज यह दिन आया है कि तुमने मुझ पर मेहरबानी की है।

    मैंने भी उसके चुम्बन का जवाब कस के उस से लिपट के उसे अपने उन्नत उभारों में भींचते हुए दिया- अरुण यार, समझा करो, कोई लड़की कैसे किसी अनजान मर्द से चुदवाने का फैसला कर सकती है, अब मैंने तुम्हे जांच लिया परख लिया, तो मैं तुम्हारी बाहों में हूँ,
    तुम सही में बहुत स्वीट हो, अरुण, तुम्हारी कहानियाँ पढ़ पढ़ के ही में समझ गई थी कि तुम असल में भी मस्त फॉर प्ले और गज़ब सेक्स करते होंगे।

    'अब जल्दी बताओ जानू चुदाई कैसे करनी है, क्यूंकि अजमेर भी समय से पहुँचना है।'

    मैं बोली- कार में कैसे करेंगे? पिछली सीट पर?

    अरुण- पिछली सीट पर कर सकते है पर इस छोटी कार में जगह बहुत कम है। मैं सोच रहा हूँ कि क्यों न आगे की सीट पर किया जाए जिस पर तुम बैठी हो। हम सीट को पीछे करके जगह बना सकते हैं।

    मैं- इस सीट पर? कैसे होगा इतनी कम जगह में?
    अरुण- ठीक है, हम यहाँ शुरू करते हैं। अगर जरूरत हुई तो पिछली सीट पर चले जायेंगे। मैं कुछ बता नहीं सकता क्योंकि मैंने कार में कभी नहीं किया है, आज पहली बार है।
    मैं- मेरा भी तो पहली बार है, ठीक है, हम पहली बार ट्राई करते हैं साथ साथ।
    एकांत और बाहर का बरसाती मौसम हमारे तन बदन में आग लगा रहा था। एक तो हम दोनों वैसे ही स्वभाव से सेक्सी है और ऊपर से यह मौसम। हम दोनों ही जानते है कि समय और जगह कैसे सही इस्तेमाल किया जाता है।

    हम लोग सेक्सी बातें कर रहे थे और कार में, हाइवे के पास और बरसात के मौसम में एक मजेदार चुदाई के लिए तैयार हो रहे थे।
    वहाँ पेड़ों के बीच कार में बैठे बैठे हमको हाइवे पर आती जाती गाड़ियों की रोशनी दिखाई दे रही थी पर हमें पता था कि कोई भी हम को देख नहीं पायेगा।

    चुदाई के लिए जगह बनाने के लिए उसने मुझे मेरी सीट पीछे करने को कहा। मैंने सीट पीछे की तो वो करीब करीब पीछे की सीट को छू गई।
    अब मेरी सीट के सामने काफी जगह हो गई थी। मैं अभी भी सोच रही थी कि इस सीट पर वो मुझे कैसे चोदेगा।
    अब मैंने सीट की पीठ को पीछे धकेला तो मैं अधलेटी पोजीशन में हो गई।

    वो बोला- डार्लिंग! हम केवल अपने नीचे के कपड़े ही उतारेंगे ताकि हम आराम से चुदाई कर सकें। अगर अचानक कोई आ गया तो ऊपर के कपड़े पहने होने की वजह से हम नंगे नहीं दिखेंगे।
    मैं उसकी बात समझ कर मान गई, हालांकि चुदवाते समय मुझे शरीर पर कपड़े बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं, मैं पूरी नंगी होकर ही चुदवाना पसंद करती हूँ पर मैं मौके की नजाकत को समझ रही थी इसलिए ऊपर के कपड़े बदन पर रख कर चुदवाने को राज़ी हो गई।

    उसने अपनी पैंट और चड्डी उतार कर पिछली सीट पर फ़ेंक दी। अब केवल वो अपनी शर्ट पहने हुए था। मैंने देखा कि उसका लण्ड धीरे धीरे खड़ा हो रहा था जैसे उस में हवा भरी जा रही थी।
    उसका लण्ड लम्बा होता जा रहा था, मोटा होता जा रहा था और ऊपर की ओर उठ रहा था।

    मैंने भी अपनी लेगिंग और चड्डी उतार कर पिछली सीट पर उसके कपड़ों पर फ़ेंक दिए।
    अब मैं भी ऊपर केवल अपना ढीला सा कुर्ता पहने हुए थी।
    मेरी मांसल, एकदम दूध जैसी गोरी और मक्खन जैसी चिकनी जांघें और मदमस्त कूल्हे देख कर वो बावरा हो गया, मैंने कल ही अरुण को पूरे मज़े देने के लिए अपनी टांगों की फुल वैक्सिंग करवाई थी, झांटों के बाल छोड़ दिए थे क्यूंकि अरुण से फोन सेक्स से मुझे आईडिया था कि उसे चूत पे बाल पसंद हैं।

    और उस बदमाश अरुण ने सही में सबसे पहले हाथ लगा कर मेरी चूत के बाल ही चेक किये, मैंने उसके हाथ पर थप्पड़ जमाया और कहा- सच में बहुत कमीने हो तुम, ऐसे किसी औरत की चूत पर डायरेक्ट हाथ नहीं लगाते हैं।

    पर उसने हाथ नहीं हटाया बल्कि बालों को पकड़ कर उसकी लम्बाई का जायज़ा लेने लगा।
    मैंने उसे बलपूर्वक पीछे धकेला और कहा- अरुण मेरे राजा, सिर्फ छूने से ही काम चलाओगे क्या? मैं तो तुम्हें न जाने क्या क्या देने वाली हूँ, थोड़ा सब्र से काम करो और चुदाई के लिए जगह बनाओ।

    यह बात उसकी भी समझ में आ गई
    चुदाई के लिए जगह बनाने के लिए उसने मुझे मेरी सीट पीछे करने को कहा। मैंने सीट पीछे की तो वो करीब करीब पीछे की सीट को छू गई।
    अब मेरी सीट के सामने काफी जगह हो गई थी। मैं अभी भी सोच रही थी कि इस सीट पर वो मुझे कैसे चोदेगा।

    अब मैंने सीट की पीठ को पीछे धकेला तो मैं अधलेटी पोजीशन में हो गई, नीचे से हम दोनों नंगे थे। उसने कार की ड्राइविंग सीट भी पीछे कर दी ताकि थोड़ी और जगह हो जाए।

    मेरा बहुत मन हो रहा था कि वो मेरी चूचियों को चूसे, पर मैं समझ रही थी कि हम किसी बंद कमरे में नहीं है और यहाँ अचानक किसी के आने का भय भी था मुझे और मैं अपनी चूत, अपनी गांड और अपनी चूचियाँ किसी और को नहीं दिखाना चाहती थी।

    उसने शायद मेरी आँखों को पढ़ लिया था, वो बोला- एक काम करो। मैं जिस तरह चुदाई करने की सोच रहा हूँ, उसमें मैं तुम्हारी चूचियाँ चोदते वक़्त नहीं चूस पाऊँगा। पर मैं तुम को चुदाई का पूरा पूरा मज़ा देना चाहता हूँ और साथ ही खुद भी पूरा मज़ा लेना चाहता हूँ। तुम अपनी ब्रा का हुक खोल लो और अपने कुर्ते को पूरी तरह से ऊँचा कर लो, इस तरह तुम्हारी चूचियाँ नंगी भी रहेंगी और ढकी हुई भी रहेंगी, मौके का फायदा उठा लेंगे।

    मुझे उसकी बात सुन कर अच्छा लगा। हम दोनों ही जानते है कि चुदवाते समय मुझे अपनी चूचियाँ और निप्पल चुसवाना बहुत पसंद है, मैंने वैसा ही किया जैसा उसने कहा।

    मेरी चूचियाँ अब मेरे कुर्ते से बाहर निकल आई थी और मस्त तन रही थी जिन्हें मैं चुसवाने को तैयार थी।

    अब तक उसका गर्म लण्ड पूरी तरह तन कर चूत से मिलने को तैयार हो गया था। मैं जानती थी कि मेरी चुदाई बहुत देर तक होने वाली है क्योंकि मैंने अभी कुछ देर पहले मुठ मार कर एक बार उसके लण्ड रस को निकाल दिया था और दूसरी बार की चुदाई हमेशा लम्बी ही चलती है।

    खैर, अब वक़्त आ गया था असली चुदाई का. चुदने का मन में ख्याल और मौका आते ही मर्द का लण्ड और औरत की चूत खुद ब खुद ही गीली होने लगती है।

    जिस लण्ड को मैंने कुछ देर पहले निचोड़ के रख दिया था, अब वो वापिस मुँह उठा कर तन कर और कड़क हो के उठ खड़ा हुआ था।
    लण्ड को पकड़ा तो वो हमेशा की तरह बहुत गर्म था।

    मैं बहुत भाग्यशाली हूँ की अरुण का लौड़ा इतना मज़बूत, इतना लम्बा, इतना मोटा और इतना गर्म है। मैं तो कहती हूँ कि यह लौड़ा नहीं, चोदने की मशीन है।

    चुदाई की शुरुआत हमने होठों के चुम्बन से की, जैसे कि इमरान हाश्मी और मल्लिका शेरावत हों हम दोनों. हम एक दूसरे के गर्म, रसीले होंठ चूसने लगे।
    होठों के चुम्बन से चुदाई की आग और भी भड़क गई।
    उसने मुझे अपने ऊपर खींचा तो मेरे हाथ उसकी गर्दन के पीछे और उसके हाथ मेरी गोल गोल, कड़क गांड पर फिरने लगे।
    मेरी चूत में खुजली होने लगी और वो गीली होने लगी।

    वो मेरी गांड दबा रहा था और अपनी उँगलियाँ मेरी गांड के विशाल उभरे हुए गोलों के बीच की दरार में घुमा रहा था।
    मैं और भी गर्म होने लगी।
    अरुण सेक्स का पक्का खिलाड़ी है उसे पता है कि कम से कम समय में किसी लड़की को कैसे गर्म किया जाता है और वो वही काम एक बार फिर कर रहा था।

    मेरी जीभ को अपने मुंह में लेकर उसने आइस क्रीम की तरह चूसा, चुभलाया।
    उसके हाथ लगातार मेरी नंगी गांड पर घूम रहे थे, उसकी उंगली मेरे कूल्हों पर घुमती हुई थोड़ी से मेरी गांड में घुसी तो मैं उछल पड़ी।
    जब उसने अपनी ऊँगली मेरी गांड में अन्दर बाहर हिलाई तो मज़ा ही आ गया।

    हाइवे पर गाड़ियाँ आ जा रही थी और कोई भी हम को देख नहीं सकता था। हमारी कार पेड़ों के बीच में थी और हम दो जवान प्रेमी उसमे चुदाई का मज़ा ले रहे थे, बिना किसी की नज़र में आये।

    मेरे लिए यह पहला मौका था जब हम पूरी चुदाई कार में करने वाले थे, अरुण तो अपनी बीवी के साथ कार में सेक्स कर चुका था, एक बार तो एयरपोर्ट रोड पे और एक बार तो बेसमेंट पार्किंग में ही, और आज वो मेरे साथ था।

    मैंने उसका तना हुआ, चुदाई के लिए तैयार लण्ड पकड़ कर उसके मुँह की चमड़ी नीचे की तो उसके लौड़े का गुलाबी सुपारा बाहर आकर चमक उठा।

    हमने चुम्बन ख़त्म किया और मैं अपनी सीट पर बैठ कर लम्बी लम्बी साँसें लगी।
    मैंने अरुण के हाथ पकड़ कर उनको अपनी नग्न चूचियों पर रखा तो वो मेरी चूचियों को मसलने लगा, मरोड़ने लगा दबाने लगा, मुझे दर्द तो हुआ पर मज़ा भी आया क्यूंकि बहुत दिनों से मेरे वक्षों में दर्द भी हो रहा था।

    उसका लण्ड अभी भी मेरी पकड़ में था। जितना दवाब उसका मेरे उभारों पर बढ़ा उतना ही ज़ोर से में भी उसके लण्ड को मसलने लगी मरोड़ने लगी।

    हम दोनों की ही सिसकारियाँ निकलने लगी थी।

    उसने अपना मुंह मेरी चूचियों तक लाने के लिए अपनी पोज़िशन बदली और अब मेरी तनी हुई दोनों सेक्सी चूचियाँ उसके चेहरे के सामने थी। मेरी गहरे भूरे रंग की निप्पल तन कर खड़ी थी, एक निप्पल को उसने अपने मुंह में लिया और दूसरी को अपनी उँगलियों के बीच में, वो मेरी एक निप्पल को किसी भूखे बच्चे को तरह चूस रहा था और दूसरी निप्पल को किसी शैतान बच्चे की तरह मसल रहा था।

    मेरी फुद्दी अब तक पूरी गीली हो चुकी थी और उसमें चुदवाने के लिए खुजली हो रही थी।
    इस पोज़िशन में मैं उसके लौड़े को देख नहीं पा रही थी पर वो अभी भी मेरे हाथ में था और मैंने उस को भी थोड़ा पानी छोड़ते हुए महसूस किया यानि वो भी मेरी चूत में घुसने के लिए मरा जा रहा था।

    हम अपने अलग ही, चुदाई के संसार में थे और हमारा पूरा ध्यान चुदाई पर ही था, हम चुदाई में ही मग्न थे।

    उसने मेरी दूसरी चूची को चूसने के लिए फिर अपनी पोज़िशन बदली।

    जो निप्पल पहले मसली जा रही थी, वो अब चूसी जा रही थी और जो पहले चूसी जा चुकी थी, वो अब मसली जा रही थी।

    उस छोटी सी कार में चुदाई का तूफ़ान उठ रहा था और बाहर बरसात हो रही थी। किसी को पता नहीं था कि वहाँ एक कार है और कार में हम दोनों चोदा-चुदी खेल रहे है।

    उसका एक हाथ मेरे पैरों के जोड़ की तरफ बढ़ा तो मैंने अपने पैर थोड़े चौड़े कर लिए ताकि वो मेरी झांटों से भारी चूत पर आराम से हाथ फिरा सके।
    हाथ फिराते फिराते वो मेरी झांटों के बालों को भी खींच रहा था, उसकी बीच की उंगली मेरी गीली फुद्दी के बीच की दरार में घुस गई।
    वो अपनी ऊँगली मेरी चूत के बीच में ऊपर नीचे मेरी चूत के दाने को मसलता हुआ घुमा रहा था।
    चूची चुसवाने से और चूत में ऊँगली करवाने से मेरे मुख से सेक्सी आवाजें निकलने लगी। उसके मुंह में मेरी निप्पल और मेरे हाथ में उसका लण्ड दोनों और कड़क हो गए।

    मैं भी उस का लण्ड चूसना चाहती थी और मैंने 69 पोज़िशन के बारे में सोचा मगर कार में यह संभव नहीं था।
    मेरी चूत में उसकी ऊँगली लगातार घूम रही थी और मैं संतुष्टि के सोपान की तरफ बढ़ने लगी।

    उसकी ऊँगली अब मेरी चूत में घुस कर चुदाई कर रही थी, मेरी फुद्दी को उसकी ऊँगली चोद रही थी।

    जैसे ही उसको पता चला कि मैं चरम पर पहुँचने वाली हूँ, उसने मेरी चूत की चुदाई अपनी उंगली से जोर जोर से करनी शुरू कर दी।
    वो मेरी चूत को अपनी ऊँगली से इतनी अच्छी तरह से, सेक्सी अंदाज़ में चोद रहा था कि मैं झड़ने वाली थी और मेरी नंगी गांड, चूतड़ अपने आप ही हिलने लगी।
    मेरे मुंह से जोर से संतुष्टि की आवाज निकली और मैं झड़ गई।
    मैंने उसकी ऊँगली को अपने पैर, गांड और चूत टाईट करके अपनी चूत में ही जकड़ लिया और झड़ने का मज़ा लेने लगी।
    आखिर मैंने उसे कह दिया कि मैं उसके गर्म लण्ड को चखना चाहती हूँ, मैं उसको इतना गर्म करना चाहती कि उसके लण्ड का पानी मेरी चूत में जल्दी ही बरस जाए, मैं उसको भी अपने अगले झड़ने के साथ झाड़ना चाहती थी।
    इसके लिए जरूरी था कि मैं उसको चुदाई के आधे रास्ते पर चूत की चुदाई शुरू करने के पहले ही ले जाऊँ।

    हमने फिर अपनी पोज़िशन बदली और वो कार की पेसेंजर सीट पर अधलेटा हो गया और मैं ड्राइविंग सीट पर आ गई।
    उसका गर्म, लम्बा, मोटा और पूरी तरह तना हुआ चुदाई का सामान लण्ड कार की छत की तरफ मुंह करके खड़ा हुआ था, जिसका नीचे का भाग मैंने अपने हथेली में पकड़ा। उसके लण्ड का सुपारा पहले से ही बाहर था जिसको मैंने सीधे अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया।

    हे भगवान्, कितना गर्म लण्ड है उसका।
    मैंने उस के लण्ड से बाहर आते पानी को चखा और अपनी जीभ उसके लण्ड के सुपारे पर घुमाने लगी।
    मेरा हाथ उसके लण्ड को पकड़ कर धीरे ऊपर नीचे होने लगा।
    मैं ड्राईवर सीट पर अपने घुटनों के बल बैठ कर, झुक कर उसके लण्ड को चूस रही थी और मेरी नंगी गांड ऊपर हो गई थी।
    यह उसको खुला निमंत्रण था।

    उसने अपना हाथ मेरी गोल नंगी गांड पर घुमाते हुए फिर से मेरी टाईट गांड में अपनी उंगली डाल दी। मैं उसको उस का लौड़ा चूस कर, मुठ मार कर गर्म कर रही थी और वो मुझे मेरी गांड में अपनी ऊँगली धीरे धीरे अन्दर बाहर कर के गर्म कर रहा था।

    अरुण को गांड मारना पसंद नहीं था पर आज मेरी गांड में ऊँगली करना उसको अच्छा लग रहा था, ऐसा उसने मुझे बताया और सच कहूँ तो मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।
    मेरी गांड में घूमती उसकी ऊँगली मुझे चुदवाने के लिए बेचैन कर रही थी।
    अरुण सच में एक बहुत अच्छा चोदू है और जो कुछ वो अपनी कहानियों में लिखता है, वो सही में आज में महसूस कर रही थी।
    उसके लण्ड की धीरे धीरे चुसाई और धीरे धीरे मुठ अब तेज हो चली थी, मेरी दोनों चूचियाँ हवा में लटक रही थी और आगे पीछे हिल रही थी, मेरी गांड में उसकी ऊँगली भी बराबर घूम रही थी।

    इतनी देर में मुझे तसल्ली हो गई थी कि सच में यह जगह सुनसान और सुरक्षित है और यहाँ कोई नहीं आ सकता है तो मेरी हिम्मत और बढ़ गई, सुविधाजनक चुदाई के लिए हमने दोनों साइड के गेट खोल लिए, अब हम चुदाई के झटके ज़ोर ज़ोर से लगा सकते थे।

    गेट खोलते ही एक काम और हुआ शानदार मानसून वाली ठंडी हवा के झोंके आने लगे, उसके साथ पानी की हल्की हल्की फुहारें भी हमारे तन-बदन को भिगो रही थी और आग लगा रही थी।
    जब मैंने महसूस किया कि मैं उस को उसके लण्ड की चुसाई से और मुठ मार कर आधे रास्ते तक ले आई हूँ और अब चूत और लण्ड की चुदाई में हम साथ साथ झड़ सकते हैं, तो मैंने उस के तनतनाते हुए लण्ड को अपने मुंह से बाहर निकाला।

    वो पेसेंजर सीट पर उसी तरह अधलेटा था और उस ने मुझे उसी पोज़िशन में अपने ऊपर आने को कहा।
    मैं उस पर लेट गई, मेरी पीठ उसकी छाती पर थी और उसका खड़ा हुआ चुदाई का औजार, उसका लण्ड मेरी गांड के नीचे था।
    उसके दोनों पैरों को मैंने अपने दोनों पैरों के बीच में ले कर चुदाई की पोज़िशन बनाई, एक हाथ से मैंने मैंने कार के दरवाजे के ऊपर के हैंडल का सहारा लिया और मेरा दूसरा हाथ ड्राईवर सीट के ऊपर था।

    मैं अब उसके लण्ड पर सवारी करने को तैयार थी।

    अपने दोनों हाथो के सहारे से से मैंने अपनी गांड ऊपर की तो उसका लण्ड राजा मेरी गीली, गर्म और चिकनी चूत के नीचे आ गया

    उसने अपने लण्ड को मेरी चूत के दाने पे रखा और उसे रगड़ते हुए कुचलते हुए मेरी चूत में अंदर तक धंसा दिया, मैं एक जबरदस्त आनंदमयी अहसास से सराबोर हो गई, और भूल गई कि मैं जंगल में हूँ और ज़ोरदार चिल्लाई।
    यदि मैं सड़क में वाहनों के हॉर्न और इंजन की आवाजें न होती तो निश्चित रूप से मेरी आवाज वहाँ तक सुनाई दे जाती।

    अरुण भी मेरी इस सीत्कार से हक्का बक्का रह गया और उसने मेरे मुँह पे हाथ रख के मेरी आवाज दबाने की कोशिश की लेकिन मैंने उसका हाथ हटा दिया, बिना चिल्लाये मुझे चुदवाने में मुझे मज़ा ही नहीं आता.
    कार के शानदार सस्पेंशन, और गद्देदार सीट की वजह से हम दोनों को ही मचके लगाने में मज़ा आ रहा था, कार भी मस्त हिल हिल कर हमारी चुदाई में हमारा भरपूर साथ दे रही थी।
    मैं बारी बारी से अपने झूलते हुए भारी उरोज उसके मुँह में दे रही थी, जो अरुण के थूक से गीले हो चुके थे।

    अरुण के हाथ मेरी गांड को मसल रहे थे, वो मुझे अब ज़ोर ज़ोर से चांटे भी मारने लगा था, और तो और उसने एक उंगली तो मेरी गांड में इतनी ज्यादा अंदर घुसा दी कि शायद वो गंदी जगह तक ही पहुँच गई थी लेकिन हमें कोई होश नहीं था।

    इस वक़्त हम सिर्फ चुदाई के मज़े ले रहे थे, बारिश थोड़ी तेज़ हो गई थी, हवा भी अब पहले से काफी तेज़ हो गई थी, हम लगभग भीगने लगे थे, मौसम की इस तेज़ी में हमने भी अपनी चुदाई की रफ़्तार बढ़ा दी और अब अरुण की भी चीखें निकलने लगी, जो मुझ से कम नहीं थी और दोस्तों उस दिन जो हम झड़े न एक साथ !!!

    ऊऊ. ऊऊऊह्हह्ह. ह्ह्ह्हह. उसे यहाँ शब्दों में लिखना मुश्किल है।

    सही में अब मुझे लगा कि अरुण से दोस्ती करना सफल हो गया।

    तो दोस्तो, जिस काम के लिये सोच कर निकले थे, वो बहुत ही शानदार ढंग से सम्पन्न हुआ।
     
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