लीना की प्यासी चूत - Hot sex stories

Discussion in 'Hindi Sex Stories' started by 007, Apr 27, 2016.

  1. 007

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    लीना की प्यासी चूत - Hot sex stories

    मैं लीना 25 वर्ष , गाँव की रहने वाली हू, बरवी के बाद मेरी पढ़ाई बंद हो गयी, 4 साल पहले मेरी शादी हो गयी थी, तो शहर आ गयी. मेरे पती संतोष कुमार एक प्राइवेट कंपनी मैं काम करते है, 10 बजे से 7 बजे तक! इसलिए घर पर बोर होने से अच्छा मैने नौकरी कर लेना उचित समझा और पास मैं हे रॉनी सलूजा सर के ऑफीस मैं ही काम मिल गया.

    यहा मेरे को दो साल हो गये, जब मैने नौकरी शुरू की ही, तब बहुत सीधी सारी थी परंतु अब मुझे कंप्यूटर चलना , बन-ना सवरना, कैसे किसी कस्टमर को अपनी बताओ से प्रभावित करना और संतुष्ट किया जाता है, ऑफीस मैं रहा कर सब सिख लिया है. यहा रहा कर ही अपनी अल्हड़ मस्त जवानी का भी एहसास हो चुका है.

    समय गुजराता रहा!

    करीब तीन माह पहले मेरे दूर के रिश्ते का भाई जीतू नौकरी की तलाश मैं शहर आया था जो 4 साल पहले मरियल सा दिखता था अब खूबसूरात और बांका जवान हो गया था, 5 माह बाद उसकी शादी होनी है. उसको देखा तो देखती ही रहा गयी! वो भी मुझे देख मेरी खूबसूराती की तारीफ़ करने लगा.

    दरअसल शाहर की हवा जो मुझे लग गयी थी तो मुझ पर निखार आना तो सावभाविक ही था. मेरा फिगर 32-29-34 है, मुझे उसके मुख से अपनी तारीफ़ सुन-ना अच्छा लग रहा था.

    वो दो दिन हमारे घर रुका, उसने और मेरे पती ने भी उसकी नौकरी के लिए यथा संभव प्रयास किए पर नतीज़ा का कुछ नही निकला. वैसे भी अपने मन का जॉब मिलना इतना आसान तो नही होता! ना जाने उसमे क्या आकर्षण था की उसके जाने के बाद मुझे उसकी याद आती रही, लगता जैसे वो मेरा दिल ले गया हो. यदि एक बार काम- वासना दिल-ओ-दिमाग़ पर हावी हो जाए तो भावनाओ को बहकते देर नही लगती, ना ही जज़्बात अपने वश मैं रहते है.

    फिर वो 20-25 दिन मैं शाहर आता रहा और मेरे मन मैं उस-से मिलन करने की ख्वाइश हावी होती रही, उस-से कैसे यौन संबंध बनाए जाए, इसी उहापोह मैं लगी रहती! मैने सोचा रॉनी से इस बड़े मैं बात करू और उस-से मिलन का रास्ता पूछ लू पर इसमे मुझे काम बिगड़ने की आशंका ज़्यादा लगी!

    जीतू की नॅज़ारो से मुझे कभी एसा नही लगा की वो मुझे ग़लत नाज़र से देखता होगा पर मेरी नाज़रो मैं खोट आ चुका था, मैं बस मौके की तलाश मैं रहने लगी और वो मौका मुझे पिछले महीने ही मिला.

    सेक्स की कहानिया पढ़ते-पढ़ते मुझे कई आइडियास मिल गये थे और जब सगे-संबंधी आपस मैं संभोग कर सकते है तो दूर के रिश्ते मैं इसे गुस्ताख़ी तो चल ही सकती है!

    उसे दिन जीतू सबह 9 बजे गाँव से आ गया था. चाय नाश्ते के बाद 10 बजे मेरे पती अपने काम पर चले गये, मैं अपने प्लान के मुताबिक बाथरूम मैं नहाने गयी और सारे कपड़े उतार कर नहाने लगी.

    आज मैं अपने नंगे बदन की नुमाइश गैर मर्द के सामने करने वाली थी. मेरे हिसाहब से मेरे खूबसूरात बेपर्दा जिस्म को देख जीतू के जजबातो का बहकना सावभाविक है, सेक्स की कल्पना मात्रा से मेरे पूरे जिस्म मैं रोमांच और सिरहन सी उत्पान हो रही थी, दिल घबरा रहा था, उतेज्नावश सारा बदन कप-कापा रहा था,मेरे स्तनो की घुंडिया कड़क हो तन गयी थी, यौनी गीली हो चली थी, मैं अपने आप मैं इतनी खुश थी और कल्पना कर रही थी की बस कुछ देर बाद ही जीतू मुझे पलंग पर पटक कर राउंड रहा होगा.

    अपनी योजना से संतुष्ट होकर मैने जीतू को आवाज़ लगाई की मेरा तौलिया बाहर रहा गया है, ज़रा दे दो. जैसे ही जीतू दरवाजे पर आया, मैने आधा दरवाजा खोल दिया, लेकिन जीतू का चेहरा दूसरी तरफ था और उसने मेरे नंगे जिस्म को एक नज़र भी नही देखा. और वो मुझे तौलिया देकर चला गया!

    मुझे इसे लगा जैसे मेरे ऊपर कई घड़े पानी डाल दिया हो, मैं अपने गीले पेंटी ब्रा छोड़कर कपड़े पहन कर बाहर आ गयी.

    आकर जीतू को कहा की वो नहा ले.

    मैं खाना लगाने लगी.

    जब वो नहा कर आया तो खाना लगते समय उसको अपने स्तनो को भी दिखाने की कोशिश कर रही थी, जो उसने एक बार तो देख लिए, फिर वो खाना खाने मैं मस्त हो गया.

    मुझे बड़ा गुस्सा आ रहा था.

    मैने बाथरूम मैं जाकर देखा. मुझे पूरी पूरी उमीद थी की मेरी ब्रा पेंटी देख कर जीतू को जोश आ गया होगा और उसने उन्न पाए हस्त-मेथुन करके ज़रूर अपना वीर्या गिराया होगा!

    निराशा से भारी मैं 11 बजे अपने ऑफीस आ गयी. सोचा, आज वासना की सटाई लीना को रॉनी का प्यार और उसका हथियार तृप्त कर देगा.

    पर रॉनी को तो जैसे तन की भाषा समझने की फ़ुर्सत ही नही थी! वो मुझे जलता छोड़कर अपनी साइट पर चला गया.

    यहा ऑफीस मैं नेट पर मेरी एक सहेली से बात होती रहती है, उसको मैने अपने दिल की बात बताई तो उसने भी कुछ टिप्स और आइडिया दिए.

    शाम को घर पहुँची तो मेरे पती आ चुके थे, आज जो आग मेरे बदन को जला रही थी पती के साथ रात मैं चुदाई करवा कर ठंडी की!

    अगले दिन 10 बजे पती के जाने के बाद अगले प्लान के तहत मैं नहाई और बिना पेंटी ब्रा के ही नाइटी पहन कर रसोई मैं बैठ गयी.

    मुझे बड़ी ही धुक-दुखी से लग रही थी, हृदय के धड़कने की आवाज़ मुझे खुद को सुनाई दे रही थी मेरी यौनी मैं एक गुदगुदाहट से महसूस हो रही थी.

    नाइटी को अस्त-वयस्त करके घुतनो तक कर लिया और जीतू को आवाज़ लगाई.

    वो आ गया, बोला- क्या हुआ?

    तो मैं बोली- जीतू मुझे चक्कर सा आ गया है और उसका हाथ पकड़कर अपने सीने से लगा दिया तो मेरी धड़कन और भी तरफ गयी.

    तेज धड़कन का एहसास पाते ही बोला- डॉक्टर के पास चलो!

    मैने कहा- पहले मुझे सहारा देकर पलंग तक पहुचा दो.

    तो उसने अपने गठिले हाथो से सहारा देकर मुझे उठाया और पलंग पर लिटा दिया.

    लेट-ते समय मैने अपनी टॅंगो को एसा कुछ किया की मेरी नाइटी मेरी जाँघो तक आ गयी और मेरी यौनी उजागर हो गयी और मैं तपड़ने का नाटक करने लगी परंतु उसने मेरी यौनी के दर्शन नही किए या फिर देख कर अनदेखा कर दिया!

    बल्कि एक चादर मेरे ऊपर डाल दी इस कांड के रोमांच और कल्पनाओ की उसान से बहुत आनंदित हो रही थी.

    चुत पर ठंडी हवा लगने के बाद भी वो भट्टी की तरह सुलग से रही थी!

    उसे पर जीतू के बदन की खुश्बू और उसके स्पर्श से इतनी उतेज़ी हो चुकी थी की उतेज़्ना से कुलबुलाती मेरी चुत से पानी बहा निकला था, एसा लग रहा था की कोई मेरी चुत मैं अपनी जीभ डाल कर सहला दे और लंड डाल कर रगड़ डाले!

    जीतू शायद एकदम से घबरा गया था मेरी हालत देख कर इसे मैं उस-से मेरी यौनी देखने की सुध ही कहा होई उस-से चिंता होगी की मुझे कुछ हो ना जाए!

    मैने कहा - रसोई मैं जाकर नींबू पानी बना लाओ.

    वो रसोई मैं चला गया तो मैं अपना हाथ स्तनो पर रखकर उन्हे मसलने लगी और दूसरे हाथ को चादर के अंदर ले जाकर गीली चुत को सहलाते हुए उंगली चुत के अंदर बाहर करने लगी.

    मुश्किल से बीस सेकेंड ही गुज़रे होंगे मेरे मूह से सिसकारिया निकल पड़ी और मेरी चुत ने पानी चोद दिया, मुझे कुछ राहत मिल गयी.

    तभी जीतू आ गया, मैं पसीने पसीने हो गयी थी, नींबू पानी पीकर बाथरूम मैं जाकर फ्रेश हुई और ऑफीस आ गयी!

    यहा भी मेरा मन नही लग रहा था क्यूंकी कल जीतू चला जाएगा और अभी भी कुछ ना कर पाई तो शायद फिर कभी कुछ नही कर पाउंगी क्यूंकी जीतू को शायद मुझ पर शक हो चला था.

    आख़िरी पन्न्तरा सोच कर मैने दोपहर 3 बजे रॉनी सर से बहाना बनाकर छुट्टी ले और घर पहुच गयी!

    दरवाजा अंदर से बंद था, मैं दूर-लॉक मैं अपनी चाबी लगाई और धीरे से दरवाजा खोला तो वाहा जीतू के जूते दिखय दिए, मैं समझ गयी जीतू घर मैं हे है.

    अंदर वाले कमरे मैं जीतू गहरी नींद सो रहा था क्यूंकी मेरी आहट को सुनकर वो ज़रा भी नही हिला था.

    मेरी साँसे तेज हो गयी, इछा हुई की कपड़े उतार कर इसको दबोच लू पर एसा नही कर सकी!

    बाहर वाले कमरे से बाथरूम और रसोई लगी हुई है, इसी कमरे मैं मेरी कपड़ो की अलमारी है, अंदर वाला कमरे को बेडरूम बनाया है जहा जीतू सो रहा था.

    मैं रसोई मैं जाकर पानी पीने लगी और अपनी योजना मैं यह सुधार किया मुझे यह प्रदर्शित करना है की मैं जीतू की घर मैं मौजूदगी से अंजान हू इसलिए उसे कमरे मैं नही गयी!

    अपनी योजना के तहत मैं सीधा बाथरूम मैं चली गयी और जीतू को जगाने के उद्देश्या से दरवाजे को इतना ज़ोर से बंद किया की उसे आवाज़ से जीतू की नींद खुलना तो ठीक, वो उठकर बैठ ही गया होगा.

    फिर मैं गाना गुनगुनाते हुए संपूर्णा नग्न होकर शवर मैं नहाने लगी.

    जीतू को मेरे गाने की आवाज़ से मेरे आने का इतमीनान हो गया होगा और वो शायद फिर सोने को कोशिश करेगा!

    अब मुझे उसके दोबारा सो जाने से पहले जल्द नगञा-वास्ता मैं बाहर आकर उसे अलमारी से कपड़े निकालने थे जो जीतू को पलंग पर लेते हुए भी पूरी तरह से दिखाई देगी और साथ मैं यह नंगी बहाया लीना भी उससे दिखागी!




    इस कृत्या के लिए मेरी हिम्मत जवाब देने लगी थी, अजीब सा ड्ऱ लग रहा था पर उतेज़्ना-वश मैने अपने कदम आगे बढ़ा दिए.

    बाथरूम का दरवाजा खोलते हुए ड्ऱ और अजीब सिरहन से हो रही थी, कैसे मैं किसी के सामने नंगी जा सकती हू, भले ही दूर का सही पर भाई तो लगता है, वो क्या सोचेगा मेरे बड़े मैं!

    फिर याद आया मुझे तो यह प्रदर्शित करना है की घर मैं मैं अकेली हू!

    मेरी ढहकां से मेरे स्तनो मैं कंपन हो रहा था और इस कम्पान से वो उतेज़ित होकर तन गये थे, मेरी चुत तो जैसे मेरे वश मैं नही थी, उसमे से लगातार निकलता चिकना तरल बहकर मेरी राणू तक आ गया था.

    दिमाग़ मैं उथल-पाठक मची हुई थी वही वो बाहर के कमरे मैं हुआ तो?

    नारी लज्जा-वश मैने तोलिया उठाकर लपेट लिया और दरवाजे को खोल कमरे मैं आ गयी!

    सब कुछ मेरे हिसाहब से हो रहा था, काप्ते कदम अलमारी तक ले आए, मैने अलमारी के अईयने से देखा, जीतू शायद उठने की चेस्टा कर रहा था.

    मेरी पीठ जीतू की तरफ था, मैने अपना तौलिया हटा दिया और अईयने मैं अपने आप को निहाराते हुए अपने नंगे गीले बदन पोछने लगी.

    अब मुझमैई कुछ हिम्मत से आ गयी थी.

    फिर अलमारी खोलकर उसमे से पेंटी ब्रा और मॅक्सी निकल ली और फिर अईयने मैं अपने को निहाराते हुए अपने बदन की ज़्यादा से ज़्यादा झलक उस-से दिखाने की कोशिश करने लगी.

    निश्चित हे मेरी बेदाग दूधिया जांघे और गोल-मटोल उभरी हुई चिकनी गांड देखकर उसके होश उस गये होंगे.

    फिर मैने ब्रा पहेनकर सोचा की पेंटी पहन-ने के लिए घूम जाओ ताकि मेरी चुत की झलक तो उसे दिखाई दे ही जाएगी.

    मैं घूम गयी. अब मेरा चेहरा जीतू की तरफ़ था लेकिन मैने उसे देखने की चेस्टा नही की, दोनो टॅंगो को फैलाकर तौलिए से एक बार फिर अपनी गीली हो राई चुत को सहलाते सॉफ किया जो उसने देख ले होगी.

    फिर मैने आगे झुक-कर अपने स्तनो की भर-पुवर झलक दिखाते हुए पेंटी पहन ले.

    अब यह सब करके अच्छा लग रहा था.

    योजना की अगली चाल के तहत मैने मॅक्सी उसाई और उसे पहन-ने से पहले ही जेटू को देखते हुए चीखना था सो मैने वही किया!

    अपनी नज़रे उठाई और आश्चर्य से जीतू को देखा जो मानता मुग्धा सा मुझे हे देखे झड़ रहा था.

    मैं उसे डातने वाले अंदाज़ मैं चिल्ला उठी- जीतू तुउुुउउ यहा?

    फिर चीखते हुए घहबरा-कर मॅक्सी लेकर रसोई मैं भाग गयी.

    मेरा दिल मेरी छाती मैं धड़ धड़ टकरा रहता पर अब मुझे जीतू को उसकी गुस्ताख़ी के लिए डातने दपतने का काम करना था!

    इससे कहते है उल्टा चोर कोतवाल को दान्टे..

    अब मेरे चेहरे पर राहत भारी कुटिल मुस्कान थी!

    10 मिनिट बाद मैने अपना त्रिया चरित्रा दिखाते हुए रुआंसी होकर नाज़ारे नीचे किए जीतू के पास गयी.

    वो अब भी बढ़वाअस सा देख रहा था!

    मैने कहा- मुझे मालूम नही था की तू घर पर हे है. मैं इस कमरे मैं भी नही आई थी, बहुत गर्मी लग रही थी तो हमेशा की तरह नहाने चली गयी और बिना कपड़ो के निकल कर बाहर आगये, यहा घर मैं अकेली रहती होंठ ओह इसे ही आदात से हो गयी! मुझे याद भी नही रहा की तू गाँव से आया हुआ है और अंदर के कमरे मैं हो सकता है, नही तो दरवाजा खोलने तुझे हे बुला लेती! परंतु तू तो बता सकता था, तूने तो जान बूझकर मेरा सब कुछ देख लिया, मुझे बहुत शर्मिंदगी लग रही है, तुझसे कैसै नाज़ारे मिला सक़ीनगी? तुम्हारे जीजू को पता चलेगा तो.

    कहकर मैने रोने का नाटक किया!

    तब जीतू बोला-दीदी, आप नहाने मैं सही बाहर निकली तो मैं आपसे कुछ बोलता, उसके पहले ही आप ने अलमारी के पास जाकर तौलिया हटा दिया. आपको इस इस्थिति मैं देख मैं चाहा कर भी कुछ बोल नही सका, आप जीजू को यह मत बठाना, नही तो वो मेरा यहा आअना बंद कर देंगे, फिर इस शहर मैं आपके अलावा मेरा है हे कौन!

    नाज़ारे नीचे किए मैं उसके लोवर का मुआएना करते हुए उसका हाथ थामकर आफ़ि छाती पर रख लिया और अपने स्तनो पर मसलते हुए बोली- जीतू, मैं तुम्हारे जीजू को नही कहूँगी, तुम भी इस बात की कभी किसी से भी चर्चा नही करना. मेरी कसम कहा और अपना दूसरा हाथ उसके कंधे पर रख दिया!

    और रोने का नाटक करते हुए उस-से लिपट गयी.

    जीतू ने मेरा ज़्यादा विरोध नही किया , बस इनकार वाले लहजे से कसमसा कर अपने को छुड़ाने की नाकाम कोशिश कर रहा था, उसका हाथ अब भी मेरे स्तनो पर था, जिसे मैं तमाई हुए थी जिस=से उतेज़्ना जागृत हो जाए1

    वो कुछ समझ पता, उस-से पहले हे मैने अपना हाथ उसके उठे हुए लोवर पर रखा तो करंट सा लग गया, उसका लंड कड़क होकर तना हुआ था, इसका मतलब मुझे नग्न देखने के बाद उसकी जवानी जोश मरने लगी है और मेरा रास्ता खुलता गया.

    मैं उसके ऊपर पूरी तरह से सॉवॅर होकर उसे दबोच लिया, अपनी दोनो जांघों के बीच उसके उठे हुए लोवर को भिच कर अपने स्तनो से उसके सिने पर रगड़ दे रही थी और अपने होंठों से उसके होंठ दबाकर उन्हे चूस रही थी, उसके दोनो हाथ और पीठ पर हरकत कर रहे थे.

    उसको अपने काबू मैं देख अपने कमर को थोड़ा ऊपर उठाकर अपनी मॅक्सी और ब्रा निकल फेंकी.

    मेरे इस रूप को देख वो मुझसे लिपट गया. आख़िर माखन को आग के संपर्क मैं आकर पिघलना हे पड़ता है!

    अब उसने मेरे स्तनो को अपने लाबो से सहलाते हुए चूसना शुरू कर ईया और अपने कठोर हाथो को मेरी पेंटी मैं डालकर मेरे मुलायम और गुदाज़ नितुंबो को सहलाने लगा.

    आअहह.सस्स्स्सस्स के स्वर लहरिया मेरे मुख से निकालने लगी, मैने अपने हाथो को नीचे ले जाकर उसका लोवर और कच्छा नीचे सरका दिया, फिर अपनी टॅंगो की मदद से उन्हे बाहर निकल दिया.

    आईई.. आहह. जीतू.. उसका खड़ा लंड कुछ गीला था जो मेरी पेंटी के साथ मेरी बुर् मैं चुभाने लगा.

    'ऊसस्स!' अब बर्दाश्त नही हो रहा है. जीतू मेरे अंगो को सहलाते हुए चूमे झड़ रहा था,मेरी पेंटी पिछपिछी गीली होकर मेरी चुत के छेद पर चिपक गयी थी.

    अब ज़्यादा देर ना करते हुए मैने उसे भी तन से निकल दिया और जीतू की कमर पर सार होकर उसके लंड को अपने चुत पर रगड़ने लगी.

    'उहह सस्स.. आआ..सस्स' इसे ही अस्पष्ट आवाज़े हम दोनो के मच से निकालने लगी, चुत और दाने पर लंड के घ्रसहड़ से असीम आनंद मिलराहा था.

    अगर कुछ देर और कराती रहती तो एरा माल हे निकल जाता.

    अच्छी तरह गीले हो चुके लंड को अपनी बुर् के मुहाने पर सेट किया और दवाब बनती चली गयी, उसका लंड मेरी यौनी मैं समा गया आहह.सस्सस्स. फिर मैने अपने चुतडो को हिलाते हुए लंड को अंदर बाहर करना शुरू किया, मेरे स्तनो को झोलता देख जीतू ने उन्हे ताकर सहलाते हुए मसल डाला.

    'उईईइ.माँ.आहह' करते हुए मैं बढ़ता बढ़ती जा रही थी, दोनो हे मादक सीत्कारो के साथ एक दूसरे से गुठे हुए थे.

    चाँद मिनिट बाद जीतू मुझसे लिपट गया और उसका गरम लावा जैसा वीर्या मेरी चुत मैं भराता चला गया.

    उनही शणो मैं मेरे बदन मैं एकदम हुई और हम दोनो एक साथ सांखलित होकर एक दूसरे मैं सामने के लिए चूमते हुए लिपट कर निढल हो गये!

    इस संभोग मैं हम दोनो को अद्भुत यौन-आनंद प्राप्त हुआ.

    हम एक-दूसरे को सहलाते हुए बाते करने लगे, तब मुझे पता चला की जीतू भी चुपका मुझे देखा कराता था, कई बार उसने रात मैं के-होल सही मुझे और मेरे पती को संभोग होते देखा है!

    उसने यह भी बताया- ब्लू फ़िल्मो मे तो मैने कई देखी है पर सेक्स आज पहली बार किया है, पर कई बार हस्तमेथुन कर चुका हू!

    जीतू अब बेशरम होकर मेरे नंगे जिस्म से खेलने लगा और मेरे बदन के हर अंग को मसलते हुए चूमने चातने लगा, यहा तक की मेरी चुत को भी चाट-ते हुए चूस डाला.

    इस चूसा मैं मेरी आहे निकालने लगी, मैं भी उसके लंड को अपने हाथो से सहलाते हुए आगे पीछे करते हुए दोबारा खड़ा करने मैं जुटी थी.

    बीच बीच मैं उसके लंड को अपने होंठों से चूमते हुए जीभ से चुबला देती.

    जल्दी हे उसका लंड कड़क हो गया.

    अब मैने उसे अपने ऊपर कुछ लिया और अपनी जाँघो को फैलते हुए टॅंगो को ऊपर उठा लिया.

    जीतू नही भी देर ना करते हुए मेरे भट्टी जसाई तपती चुत मैं अपना गरम लोडा डाल दिया और मेरी चुत मैं लंड के पेलाई शुरू कर दी.

    इस बार 10-12 मिनिट तक रगड़कर मेरी चुदाई की उसने!

    जितना यौन सच उठाया जा सकता था हम दोनो ने उठाया!

    फिर दूसरे दिन उसको गाँव जाना था तो मेरे पती के जाने के बाद एक बार फिर हमने अपने जिस्मो की प्यास बुझाई.

    फिर मैं ऑफीस और वो गाँव चला गया.

    आज मेरी यह ख्वाइश पूरी हो गयी थी!

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