ससुरजी से चुदवाकर दो बच्चो की माँ बनी 2

Discussion in 'Hindi Sex Stories' started by 007, Jun 17, 2016.

  1. 007

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    //8coins.ru वे मेरे संकोच को समझ गये, Antarvasna Kamukta Hindi sex Indian Sex Hindi Sex Kahani Hindi Sex Stories दुबारा बैठने के लिये नहीं कहा और अपनी बात बोलने लगे, " देखो.ना तुममें खराबी है और ना ही मेरे लड़के में कोई खराबी है, मेरा लड़का ही बेवकुफी कर रहा है, जिसके कारण हर कोई सोचने लगा की अब तुम्हे बच्चे नहीं होंगे, उस मुर्ख को कितनी बार समझाया की नाईट ड्यूटी मत लगवाया करो, लेकिन वह मानता ही नहीं, रात भर अस्पताल में ड्यूटी करेगा यहाँ कुछ करेगा ही नहीं तो बच्चे कैसे होंगे," आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मैं पापा जी की बात समझ कर लज्जा उठी, एक नजर उनकी और देखा और शांत खड़ी रही, वे सही बात कह रहे थे,मुझे ऐसा ही लगा, क्योंकि नाईट ड्यूटी कर के वो सबेरे आते थे और दिन भर खर्राटे मार कर सोते थे, शाम को फिर चले जाते थे, नाईट ड्यूटी नहीं होती तो वे मेरे साथ सोते थे, लेकिन महीने में दो या तीन बार ही संभोग करते थे, मेरे दिमाग में यह बात भी बैठ गई थी की जब तक अंधाधुन संभोग ना किया जाये गर्भ नहीं ठहरता, गर्भ की बात तो अलग, मैं जवानी के दौर से गुजर रही थी, मैं खुद को अतृप्त महसूस करती थी, मेरा यौवन संभोग के बिना प्यासा रहने लगा था, आगे पापा जी बोले, " आज वह सलाह दे रहा है डाक्टर के पास जाने की, कल कहेगा मैं तुम्हे माँ बना सकता हूँ, मानता हूँ की भरपुर जवान और सुन्दर युवती को पुरुष का भरपुर सहवास चाहिये, माँ बनने की लालसा हर औरत में होती है, तुम्हे एक बच्चा हो चुका है, लेकिन एक ही काफी नहीं है, कम से कम तीन, नहीं तो दो तो होने ही चाहिये, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की तुम उसके दोस्तों से मेल जोल बढाओ और उसके सहवास से माँ बनो, ये आज कल के छोकरे बिन पैंदी के लोटे हैं, कभी इधर लुढ़कते हैं कभी उधर, इनमें गंभीरता नाम की चीज होती ही नहीं है, ये अपने दोस्तों तक बिना हिचके बात पहुंचा देते हैं, फिर बदनामी मिलती है, तुम उससे बातें करना बन्द कर दो, कोई गंभीर आदमी होता तो मैं मना नहीं करता, माँ बनने के और भी उपाय हैं,"

    " क्या...?" मैं अकस्मात ही पूछ बैठी

    वे मुस्कुराये फिर बोले, " तुम मुन्ने को ले जाकर बिस्तर पर लिटा आओ तो बताता हूँ, ऐसा उपाय है कि सोने पर सुहागा, घर कि इज्जत घर से बाहर नहीं जायेगी और तुम्हे दो तीन बच्चे भी मिल जायेंगे, फिर अधूरी प्यास भी तुम्हे बैचैन करती होगी,"

    चूँकि मुझे माँ बनने का रास्ता चाहिये था, इसलिए पापा जी के पास मैंने वापस आने का मन बना लिया, मैं झुकी, मुन्ने को उठा कर खड़ी होने लगी, तभी पापा जी ने मेरे वक्ष पर उभरी गोलाइयों को छूते हुवे पूछा, " मुन्ने को लिटा कर आओगी ना,"

    मैं हडबडा गई, मुन्ना हाँथ से छूटते छूटते बचा, लेकिन जब मैं उनके कमरे से बाहर निकल आई तो सोचने लगी, पापा जी का सहवास आसानी से मिल रहा है, बुरा तो नहीं है, घर कि इज्जत घर में ढकी रहेगी, वे खुद किसी से चर्चा करेंगे तो पहले उन पर ही थु थु होगी, मन से तो मैं तैयार हो गई, लेकिन मुन्ने को लिटाने के बाद मैं बाहर कि ओर कदम नहीं उठा पा रही थी, आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | कुछ देर तक खड़ी रही,साहस जुटाती रही कि मेरे कदम दरवाजे की ओर बढ़ जायें, लेकिन हमारे संबंध ने मेरे पावों में बेड़ियाँ सी डाल दी थी, मेरा मन और तन अजीब सी गुदगुदी से भर उठा था, केवल एक दरवाजा लांघते ही पापा जी के कमरे में दाखिल हो जाना था, लेकिन मुझे लग रहा था कि सफ़र बहुत लंबा तय करना पड़ेगा, बहुत देर बाद भी जब हिम्मत नहीं कर पाई तो स्विच ऑफ़ करके मुन्ने के पास बिस्तर पर बैठ गई, जितना कठिन था पापा जी की ओर कदम उठाना उतना ही कठिन लग रहा था हार कर मुन्ने के पास बिस्तर पर लेट जाना, बैठ जरूर गई, लेकिन लेटने का मन नहीं हो रहा था, दरवाजा खुला था, मेरे पति नाईट ड्यूटी पर नहीं होते तो बीच का दरवाजा बंद कर लेती थी, पापा जी के कमरे में बत्ती जल रही थी, वे शायद मेरे आने की राह देख रहे थे, निराश होकर वे भी उठे और बत्ती बुझा कर लेट गये, मेरा निचला होंठ दांतों के निचे दब गया, पापा जी ने जितनी लिफ्ट दे दी थी उसके आगे बढ़ने में शायद वे भी संकोच कर रहे थे, हो सकता है मेरी असहमती समझ कर पीछे हट गये हों, मैं पछताने लगी, मन अभी भी कशमकश में पड़ा हुआ था की उनके पास चली जाऊं या नहीं,?

    एक लंबी सांस छोड़ कर मैंने अपना माथा अपने घुटनों में झुका लिया, एक तरफ मेरी माँ बनने की लालसा थी तो दूसरी तरफ हमारा पवित्र संबंध, स्थिति ने मुझे अधर में लटका कर छोड़ दिया था,

    थोडी देर बाद पापा जी की आवाज मेरे कानों में पड़ी, " बहु आज पानी मेरे पास नहीं रखा क्या?"

    " अभी लाती हूँ," कह कर मैं झट उठ पड़ी, स्विच ऑन करके पानी लेने नल की ओर तेजी से बढ़ गई, मुझे अच्छी तरह याद था की मुन्ने को उठाने गई थी तो रोज की तरह पानी लेकर गई थी, मालूम होते हुवे भी पापा जी ने पानी माँगा था, इसे मैंने पापा जी का स्पष्ट आमंत्रण माना, मुझे भी उनके पास जाने का बहाना मिल गया था, इसलिए पानी रख आई हूँ यह बात मैंने भी भुला दी, अब दोबारा पानी लेकर जाने पर फंस कर रह जाना लाजमी था, इसलिए मुन्ने के लिये मैंने बत्ती जला दी थी ताकि अँधेरे में आँख खोले तो डर ना जाये, आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | पानी ले जाकर यथास्थान रखने के लिये झुकी तो मैंने कहा, " पानी तो रख ही गई थी, रखा तो है,"

    पापा जी ने मेरी बांह पकड़ कर कहा " हाँ पानी तो पहले ही रख गई थी, मैंने पानी के बहाने यह पूछने बुलाया है की क्या तुम मेरी बात का बुरा मान गई?"

    मैंने कहा " नहीं तो "

    "अगर बुरा नहीं मन है तो आओ, बैठ जाओ ना, आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | कहते हुवे उन्होंने मेरी बांह खिंची, मै संभल नहीं पाई या ऐसा भी समझ सकते हैं कि मैंने संभलना नहीं चाहा, लड़खड़ा कर बैठ सी गई, शर्माओ मत बहु, यह तो समस्या के समाधान की बात है, और बच्चे पाने के लिये तुमने जो कदम उठाना चाहा वह गलत नहीं था, गलत तो वह लड़का है जिसकी ओर मैंने तुम्हारा झुकाव देखा, तुम इतनी सुन्दर हो की तुम्हे किसी का भी सहवास मिल जायेगा, लेकिन बाहरी किसी एक आदमी की आगोश में जाओगी तो उसके अनेक दोस्त भी तुम्हे अपनी आगोश में बुलायेंगे, मज़बूरी में तुम्हे औरों का भी दिल खुश करना पड़ेगा, तुम इनकार करोगी तो चिढ़ कर वे तुम्हे बदनाम करेंगे, नहीं इनकार करोगी तो भी बात एक दुसरे दोस्तों तक पहुँचेगी और तुम चालू औरत के रुप में बदनाम हो जाओगी, खानदान की नाक कटेगी सो अलग, मैं घर का सदश्य हूँ, हमारे संबन्ध ऐसे हैं कि किसी को संदेह तक नहीं होगा, मैं तुम्हारी बदनामी की बात सोच भी नहीं सकता, क्योंकि खुद मेरा मुंह काला हो जायेगा, अब शर्म छोडो और आओ मेरी आगोश में समा जाओ,"
    कह कर पापा जी ने मुझे अपनी ओर खिंचा और बाँहों में बाँध लिया, मैंने जरा भी विरोध नहीं किया ओर उनके सीने में दुबक गई, समर्पण ही मेरे पास एक मात्र रास्ता था, पापा जी यानि मेरे ससुर बुढे नहीं हुवे हैं, अभी अधेडावस्था में पहुंचे हैं लेकिन युवा दिखने में की चेष्टा में सफल हैं, हमसे एक पीढी उपर जरूर हैं, लेकिन उनको सुन्दरता की परख ही नहीं है बल्कि रुप सौंदर्य को भोगने का आधुनिक ज्ञान भी है, यह मुझे उसी रात पता चल गया था, मैं उनके अगले कदम की प्रतीछा सांस रोक कर रही थी, सहसा ही मेरी रुकी हुई लंबी सांस छुट गई, " क्या हुआ? प्यास बहुत तड़पा रही है ना," कहने के साथ ही उन्होंने मेरे जिश्म को कस कर भींच दिया, " आह! " मैं कराह उठी,इसके साथ ही मैंने चेहरा भी उठा दिया, आँखें चार हुई तो लज्जावश मेरी पलकें बंद हो गई, मै तैयार नहीं थी, सहसा ही पापा जी ने अपने तपते होंठों को मेरे होंठों से चिपका दिया, मेरी थरथराती सांस फिर छुट गई, " वाह! " होंठ उठा कर बोले " बहुत हसीन हो तुम,तुम्हारी साँसों की खुशबु चमेली के फूल जैसी है ..|

    कहानी जारी है.. आगे की कहानी पढ़ने के लिए निचे दिए गये पेज नंबर को क्लिक करे ...
     
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