चुदाई भरा सुहाना सफ़र

Discussion in 'Hindi Sex Stories' started by 007, Nov 22, 2017.

  1. 007

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    //8coins.ru desi chudai मिताली और उनके पति पंकज सहारनपुर में रहते थे, पंकज सरकारी बैंक में नौकरी करते थे, लेकिन उनका तबादला पटियाला हो गया था तो वे अपना कुछ सामान पटियाला लेकर जा रहे थे, वैसे तो काफ़ी सामान उन्होंने छोटे ट्रक से भेज दिया था पर कांच की कुछ चीज़ें, क्रॉकरी आदि अपनी कार से लेकर जा रहे थे।

    हर्षित नाम का एक युवक उनके पड़ोस में ही रहता था। सामान कुछ ज़्यादा था इसलिये पंकज ने हर्षित को भी साथ चलने को कहा ताकि वहाँ जाकर सामान गाड़ी से उतारकर रखवाने में ज़्यादा दिक्कत ना हो।


    रविवार का दिन होने के कारण हर्षित के कॉलेज की छुट्टी थी और वैसे भी हर्षित मिताली भाभी का कहा हुआ कभी नहीं टालता था। उनका बात करने का तरीका ही इतना लुभावना था कि जब भी वो प्यार से कोई भी काम कहती, हर्षित मना ना कर पाता था।

    सितम्बर का महीना था। हर्षित की पूरी सुबह मिताली भाभी और उनके पति पंकज का सामान उनकी गाड़ी में रखवाने में निकल गई थी।

    पंकज और मिताली की शादी को अभी ढाई साल ही हुए थे, अभी तक उनके कोई बच्चा नहीं हुआ है।
    मिताली भाभी पंजाबी परिवार से हैं और बला की खूबसूरत हैं, उनका गोरा रंग, नीली आँखें, गदराया बदन और गुलाबी होंठ किसी भी उम्र के मर्द को पागल कर दें, और फ़िर हर्षित तो एकदम युवा है, सिर्फ़ उन्नीस साल का, उस पर मिताली भाभी का जादू चलना लाज़मी था।

    वो हर्षित के पड़ोस में दो सालों से रह रही थीं, इतने समय में हर्षित और मिताली भाभी काफ़ी घुलमिल गए थे।

    हर्षित तो पहले दिन से ही मिताली भाभी के हुस्न का दीवाना था।

    उस दिन सुबह से ही हर्षित, मिताली भाभी और उनके पति गाड़ी में सामान रखते-रखते पसीने से लथपथ हो चुके थे।

    गाड़ी सामान से लगभग भर ही चुकी थी। ऐसा लग रहा था जैसे सारा सामान रखने के बाद किसी और के बैठने की जगह ही नहीं बचेगी।
    तभी पंकज घर के अन्दर गए ताकि आखिरी बचा हुआ सामान ला सकें।

    हर्षित और मिताली भाभी ने जैसे ही उन्हें घर से बाहर आने की आहट सुनी तो मुड़ कर देखा तो दोनों हैरान रह गये।
    पंकज अपना 42 इंच का टीवी उठाए आ रहे थे।

    'अब इस टीवी को कहाँ रखेंगे?' हर्षित ने मिताली भाभी को बोलते सुना।

    'मुझे नहीं पता, पर इसके बिना मेरा काम नहीं चलने वाला। इसे तो मैं लेकर ही जाऊँगा। थोड़ा बहुत सामान इधर-उधर खिसका कर जगह बन ही जायेगी।' पंकज बोले।

    हर्षित ने पिछली सीट पर देखा और कहा- पीछे तो जगह नहीं है। मेरे ल्ह्याल से आगे वाली सीट पर ही रखना पड़ेगा?
    'अच्छा? तो फ़िर तुम्हारी भाभी कहाँ बैठेंगी?' पंकज बोले।

    उनके चेहरे से लग रहा था जैसे वो गहन चिंतन में डूबे हुए हैं और कोई न कोई रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं।

    उन्होंने टीवी आगे वाली सीट को लेटाकर इस तरह से रखा कि आधा टीवी आगे ड्राईवर के साथ वाली सीट पर और आधा ड्राईवर के ठीक पीछे वाली सीट पर आ गया।

    फ़िर हर्षित से पीछे वाली सीट पर बैठने को कहा।

    हर्षित के बैठते ही उन्होंने मिताली भाभी को भी हर्षित के साथ बैठने को कहा और गाड़ी का दरवाज़ा बन्द करने की कोशिश करने लगे, पर काफ़ी कोशिश करने के बाद भी दरवाज़ा बन्द नहीं हुआ।

    भाभी कहने को मोटी तो नहीं थी पर जगह ही इतनी कम थी कि किसी भी हालत में दो जने वहाँ नहीं बैठ सकते थे।
    भाभी ने अपने पति को समझाने की कोशिश की- एक काम करते हैं, आज टीवी यहीं छोड़ दीजिये। आप जब अगली बार जायेंगे तो ले जाना।

    'बिल्कुल भी नहीं. कल से क्रिकेट के मैच शुरू हो रहे हैं, मेरा काम नहीं चलने वाला टीवी के बिना!' वो बिल्कुल भी मानने को तैयार नहीं थे।

    भाभी पहले ही गर्मी से परेशान थीं, उनके चेहरे पर गुस्सा साफ़ दिखाई देने लगा था, उन्होंने झल्ला कर कहा- देखिये, फ़टाफ़ट फ़ैसला कीजिए, इतनी कम जगह में दो लोग नहीं आ सकते।

    या तो आप अपना टीवी छोड़ दीजिये, या फ़िर हर्षित को मेरी गोद में बैठना पड़ेगा और मुझे नहीं लगता कि मैं हर्षित का वज़न झेल पाऊँगी!

    इतना सुनते ही उनके पति ने झट से कहा- अरे हाँ! यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। एक काम करो, तुम हर्षित की गोद में बैठ जाओ। वैसे भी तुम हल्की सी ही तो हो, हर्षित को ज़्यादा दिक्कत नहीं होगी। रास्ता भी इतना लम्बा नहीं है, बस कुछ घण्टों की तो बात है।

    पंकज हर्षित को बच्चा ही समझते थे, इसलिए उन्हें इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी कि उनकी बीवी हर्षित की गोद में बैठे।

    'आपका दिमाग तो ठीक है? इतनी गर्मी में यह परेशान हो जायेगा।' भाभी ने अपने पति को गुस्से से घूरते हुए कहा।

    'कोई दिक्कत नहीं है भाभी! वैसे भी रास्ता इतना लम्बा नहीं है और ऊपर से दूसरा कोई तरीका नहीं है।' हर्षित ने कहा।

    तभी पंकज भी बोले- सही बात है मिताली, मान जाओ ना?

    मिताली भाभी के पास पंकज की बात मान लेने के सिवा कोई चारा नहीं था, उन्होंने कहा- चलो ठीक है। अगर हर्षित को दिक्कत नहीं है तो ऐसे ही कर लेते हैं। लेकिन अगर रास्ते में हर्षित को दिक्कत हुई तो थोड़ी देर गाड़ी रोक लेंगे।

    भाभी ने हर्षित की ओर देखा तो उसने 'हाँ' में सिर हिला दिया।

    भाभी ने कहा- तो ठीक है। चलो सब नहा लेते हैं, गर्मी बहुत है। फ़िर चलेंगे।

    हर्षित अपने घर गया और फ़टाफ़ट नहा-धोकर वापिस आ गया। रास्ता साढ़े तीन से चार घण्टे का था और काफ़ी गर्मी होने वाली थी इसलिए हर्षित ने थोड़े आरामदायक कपड़े पहनने का फ़ैसला किया और अपनी टी-शर्ट और निकर ही पहन ली।

    मिताली और पंकज भी थोड़ी देर में तैयार होकर आ गए।

    भाभी ने भी गर्मी को ध्यान में रखते हुए एक पतला सा कुर्ता और सलवार ही पहनी थी। पंकज ड्राईवर सीट पर बैठ गए और हर्षित पीछे की सीट पर बैठ गया। भाभी भी पीछे वाली सीट पर हर्षित की गोद में बैठ गई और गाड़ी का दरवाज़ा बन्द कर दिया।

    'तुम ठीक से बैठे हो ना?' भाभी ने हर्षित से पूछा।

    'जी भाभी, आप चिन्ता मत करो। मुझे कोई दिक्कत नहीं है। आप तो एकदम हल्की सी हैं!' हर्षित ने जवाब दिया तो भाभी मुस्कुराए बिना न रह सकी।

    तभी उन्होंने अपने पति को चलने को कहा। उनके पति को सिर्फ़ उनका सिर ही दिखाई दे रहा था क्योंकि सारी जगह उनके टीवी ने घेर रखी थी।

    'तुम ठीक से बैठी हो ना?' उनके पति ने पूछा।

    भाभी अपनी जगह पर थोड़ा हिली और बोली- हाँ! एकदम ठीक हूँ।

    गाड़ी चल पड़ी और चलते ही पंकज ने गाने चला दिये।
    सफ़र लम्बा था। करीब एक घण्टा बीत गया था और गाड़ी अपनी पूरी रफ़्तार से चली जा रही थी।
    मिताली आराम से बैठी गाने सुन रही थी कि तभी उन्हें अपने नीचे कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ।
    उन्होंने खुद को थोड़ा हिलाकर ठीक करने की कोशिश की पर अभी भी उन्हें कुछ चुभ रहा था।

    वो थोड़ा ऊपर उठी और फ़िर ठीक से बैठ गई, पर अभी भी मिताली को अपने नीचे कुछ महसूस हो रहा था।

    हर्षित साँस रोके चुपचाप बैठा था कि अब तो भाभी को पता लग ही जायेगा कि क्या हो रहा है।

    'मैं जब बैठी थी तब तो यहाँ ऐसा कुछ नहीं था तो अब कहाँ से.' मिताली खुद से बातें कर रही थी और तभी अचानक से उन्हें अंदाज़ा हुआ कि वह चुभने वाली चीज़ क्या है।

    मिताली के गोद में बैठने के कारण हर्षित के लंड में तनाव आ रहा था और वही मिताली की गांड की दरार में चुभ रहा था।

    'हे भगवान! हर्षित का लंड मेरे बैठने के कारण खड़ा हो गया है।' मिताली ने मन ही मन सोचा, 'मुझे उम्मीद नहीं थी के आज भी मेरी वजह से किसी जवान लड़के का लंड खड़ा हो सकता है। कितना बड़ा होगा हर्षित का लंड? क्या सोच रहा होगा वह मेरे बारे में मन ही मन? क्या उसे भी मेरे चूतड़ों के बीच की खाई महसूस हो रही है?' मिताली का मन ऐसे रोमांचक सवालों से प्रफ़ुल्लित हो उठा था।

    मिताली ने नीचे कि ओर देखा तो उनका कुर्ता भी खिसक कर ऊपर उठ गया था और उनकी नाभि साफ़ दिखाई दे रही थी। एक बार तो मिताली ने सोचा कि कुर्ता नीचे कर लिया जाये, पर फ़िर मिताली ने हर्षित को थोड़ा तंग करने के इरादे से उसे वैसा ही रहने दिया।

    मिताली को यह विचार बड़ा रोमांचित कर रहा था कि उनकी वजह से हर्षित उत्तेजित हो रहा है।

    हर्षित के हाथ उनके दोनों तरफ़ सीट पर टिके हुए थे।
    चलते-चलते एक घण्टे से ज़्यादा हो चुका था, पर अभी भी कम से कम दो ढाई घण्टे का सफ़र बाकी था।

    मिताली जानती थी कि पंकज को उनके सिर के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था कि नीचे क्या हो रहा है। उनके टीवी के आड़ में सब कुछ छुपा हुआ था।

    तभी मिताली ने महसूस किया कि हर्षित थोड़ा उठकर अपने आप को व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहा था।

    जैसे ही हर्षित दोबारा बैठा तो उसका लण्ड ठीक भाभी के चूतड़ों के बीच में आ गया।

    मिताली का मन इस एहसास से और भी रोमांचित हो उठा और वो मन ही मन कामना करने लगी कि हर्षित कुछ ना कुछ और करे।

    'तुम ठीक से बैठे हो ना हर्षित?' मिताली ने पूछा।

    'हाँ भाभी! मैं तो एकदम ठीक हूँ। आपको तो कोई दिक्कत नहीं हो रही ना?' हर्षित ने इस उम्मीद में पूछा कि अगर भाभी को उसके लंड की वजह से कोई दिक्कत होगी तो वो इशारों में कुछ कहेंगी।

    लेकिन मिताली ने कहा- 'बिल्कुल नहीं! बल्कि मुझे तो अच्छा ही महसूस हो रहा है ऐसे बैठकर। तुम्हारे दोनों हाथ एक ही जगह रखे-रखे थक तो नहीं गए ना?'
    हर्षित को भरोसा नहीं हो रहा था कि भाभी ने सच में वो सब कहा है, उसने जवाब दिया- हाँ भाभी, थोड़ा सा..

    'एक काम करो, तुम अपने दोनों हाथ यहाँ रख लो।' कहकर मिताली ने हर्षित के दोनों हाथ अपनी दोनों जांघों पर रखवा लिये।

    'अब ठीक है?'

    'हाँ, अब तो पहले से बहुत बेहतर है।' हर्षित ने खुश होकर कहा।

    मिताली ने नीचे की ओर देखा तो पाया कि हर्षित ने अपनी दोनों हथेलियाँ उनकी दोनों जांघों पर रख ली थी और उसके दोनों अँगूठे मिताली की चूत के बहुत पास थे।
    मिताली मन में सोचने लगी के अगर हर्षित थोड़ा सा भी अपने अँगूठों को अन्दर की ओर बढ़ाए तो उनकी चूत को सलवार के ऊपर से छू सकता है, पर मिताली जानती थी कि हर्षित इतनी आसानी से इतनी हिम्मत नहीं करने वाला।

    हर्षित की छुअन से मिताली की चूत से रस निकलने लगा था और उनकी पैंटी भीगने लगी थी, उन्हें लग रहा था कि थोड़ी ही देर में यह गीलापन उनकी सलवार तक पहुँच जायेगा और तब अगर हर्षित ने उसे छू लिया तो वह समझ जायेगा भाभी के मन में क्या चल रहा है और वो कितनी गर्म हो चुकी हैं।

    मिताली ने खुद ही हिम्मत करके बात आगे बढ़ाने की सोची और अपने दोनों हाथ हर्षित के हाथों पर रख लिये।

    देखने में भाभी की यह हरकत बड़ी ही स्वाभाविक सी लग रही थी। फ़िर उन्होंने हर्षित के हाथों को ऊपर से धीरे-धीरे मसलना शुरू किया।

    मिताली ने एक बार सिर उठाकर अपने पति की ओर देखा। अपने पति के इतनी पास होते हुए हर्षित के साथ ऐसी हरकतें करना उन्हें बड़ा ही रोमांचित कर रहा था।
    मिताली ने हर्षित के हाथों को मसलते-मसलते उन्हें धीरे-धीरे ऊपर की ओर खिसकाने की कोशिश की ताकि हर्षित के हाथों को अपने चूत के ठीक ऊपर ला सके।

    हर्षित भी अब तक समझ चुका था कि भाभी क्या चाह रही हैं, वह खुद भी वासना से भर कर पागल हुआ जा रहा था।

    मिताली ने नीचे की ओर देखा तो हर्षित अपने दोनों हाथ भाभी की टाँगों के ठीक बीच में ले आया था और अपने दोनों अँगूठों से भाभी की चूत को उनकी सलवार के ऊपर से हल्के-हल्के सहलाने लगा था।

    मिताली ने हर्षित का एक हाथ पकड़कर अपनी चूत के बिल्कुल ऊपर रख लिया और अपनी टाँगों को थोड़ा और चौड़ा कर लिया जिससे हर्षित अच्छे से भाभी की चूत को उनकी गीली हो चुकी सलवार और पैंटी के ऊपर से सहला पा रहा था।

    मिताली ने हर्षित का हाथ पकड़कर ज़ोर से अपनी चूत पर दबा दिया तो हर्षित ने भी भाभी की चूत को थोड़ा और ज़ोर से रगड़ना शुरू कर दिया।

    अब मिताली भी वासना की आग में बुरी तरह जल रही थी, उन्होंने अपने हाथ हर्षित के हाथों के ऊपर से हटा लिए थे पर हर्षित ने अपने हाथ वहीं रखे और भाभी की चूत को रगड़ना बन्द कर दिया।

    मिताली बेसब्री से इंतज़ार करने लगी कि हर्षित कुछ करे, पर शायद हर्षित आगे बढ़ने में अभी भी डर रहा था।

    लेकिन मिताली जानती थी कि उसका डर कैसे दूर करना है, मिताली ने हर्षित का एक हाथ पकड़ा और उसे उठाकर अपने पेट पर अपनी सलवार के नाड़े के ठीक ऊपर रख दिया और उसके हाथ को दबा दिया और दूसरे हाथ से अपना नाड़ा खोलने लगी।
    नाड़ा खोलते ही मिताली ने हर्षित का हाथ अपनी सलवार के अंदर की ओर कर दिया जिससे हर्षित का हाथ भाभी की बुरी तरह भीग चुकी पैंटी पर आ गया।

    हर्षित ने भाभी की चूत को गीली पैंटी के ऊपर से रगड़ना शुरू किया। वह अब भाभी की चूत की फ़ाँकों को अच्छे से महसूस कर सकता था।

    मिताली ने थोड़ी देर तक तो उसी तरह हर्षित के हाथ का मज़ा लिया, फ़िर उसे पकड़कर अपनी पैंटी की इलास्टिक की तरफ़ ले जाकर उसके अन्दर की ओर धकेल दिया।
    भाभी की पैंटी हर्षित और भाभी दोनों के हाथों के लिए बहुत छोटी थी, इसलिए मिताली ने अपना हाथ बाहर ही रखा और सिर्फ़ हर्षित के हाथ को ही आगे बढ़ने दिया।

    हर्षित ने भाभी की चूत के होंठों को पहली बार छुआ तो उसके पूरे शरीर में गर्मी सी आती हुई महसूस हुई।
    हर्षित ने भाभी की चूत की दोनों फ़ाँकों के ठीक बीच में अपनी उंगलियों से सहलाना शुरू किया तो मिताली के मुख से ज़ोर की सिसकारी निकल गई पर गाड़ी के शोर में और गानों की आवाज़ में मिताली की आवाज़ दब कर रह गई।

    मिताली की चूत एकदम गर्म होकर तप रही थी और पूरी तरह से भीगकर चिकनी हो चुकी थी।

    तभी मिताली ने अपने चूतड़ ऊपर की ओर उठाए और अपनी पैंटी की इलास्टिक के दोनों ओर अपने दोनों हाथों के अँगूठे फ़ंसाकर उसे नीचे की ओर खिसका दिया जिससे उनकी पैंटी और साथ ही उनकी सलवार उनके घुटनों तक नीचे खिसक गई।

    मिताली के ऐसा करते ही हर्षित ने एक बार भाभी के चूतड़ सहलाए और फ़िर अपने दूसरे हाथ की उंगली भाभी की चूत में घुसा दी और उसे धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करने लगा, पर पैंटी के कारण मिताली की टाँगें ज़्यादा खुल नहीं पा रही थी इसलिए मिताली अपनी पैंटी पूरी तरह उतारने के लिए थोड़ा नीचे झुकने ही लगी थी कि हर्षित ने अपने दूसरे हाथ से उनकी पैंटी को पकड़कर नीचे की ओर खींच दिया जिससे वो भाभी के टखनों तक आ गई।

    तभी मिताली ने अपने पाँव ऊपर उठाए ताकि हर्षित उन्हें पूरी तरह निकाल दे।

    हर्षित ने भाभी की पैंटी के साथ-साथ उनकी सलवार भी खींचकर नीचे उतार दी।

    अब मिताली ने आराम से अपनी टाँगें पूरी खोल ली थीं, जितना वो खोल सकतीं थीं।

    हर्षित को तो जैसे इसी मौके का इंतज़ार था, उसने तुरन्त अपनी दो उंगलियाँ भाभी की चूत में घुसा दीं।

    मिताली के मुँह से हल्की सी 'आह' निकल गई।

    'तुम ठीक तो हो ना?' अचानक पंकज ने पूछा।

    वो मिताली के चेहरे को ही देख रहे थे।

    मिताली मुस्कुराई और बोली- मैं तो एकदम ठीक हूँ। मुझे लगा था हर्षित की गोद में बैठने से दिक्कत होगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं है। मुझे लगता है यह सफ़र काफ़ी अच्छा जाने वाला है।

    मिताली अपने पति से बड़े आराम से बात कर रही थी और हर्षित की उंगलियाँ भाभी की चूत को चोद रही थी।

    'और कितनी देर चलने के बाद विराम लेना है?' पंकज ने पूछा।

    'मैं अभी रुकना नहीं चाहती, थोड़ा और आगे बढ़ना चाहती हूँ।' मिताली ने जवाब दिया- तुम्हारा क्या विचार है हर्षित?

    उन्होंने हर्षित से पूछा।

    'हाँ भाभी, मेरा भी अभी और आगे चलते रहने का मन है।' हर्षित ने कहा।

    'अच्छा है, जितना आगे तक चलें, उतना ही बेहतर है।' मिताली मुस्कुराते हुए बोली।
    'ठीक है ना?' मिताली ने अपने पति से पूछा।

    'हाँ मुझे भी लगता है बिना रुके जितना आगे पहुँच जायें, उतना ही बेहतर है।' उन्होंने जवाब दिया।

    मिताली पीछे की ओर मुड़ी और हर्षित की ओर देखते हुए बोली- मुझे भी! मैं नहीं चाहती कि तुम्हें रुकना पड़े।
    मिताली ने धीमी आवाज़ में कहा।

    'हर्षित?' पंकज बोले- तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं ना तुम्हारी भाभी के गोद में बैठने से?
    'बिल्कुल नही
     
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