जब मेरी लुल्ली लंड बनी

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//8coins.ru desi sex stories दोस्तो, आज मैं आपको अपने एक मित्र के मित्र की सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूँ। ये बात करीब 20 साल पुरानी है। जब मेरा मित्र और उसका मित्र दोनों स्कूल में पढ़ते थे। दोनों गहरे दोस्त थे, हर दम साथ। तो लीजिये कहानी सुनिए।

मेरा नाम सुनील है, मैं धनबाद में रहता हूँ। मैं और मेरा गहरा दोस्त किशन, बचपन से ही गहरे मित्र थे, एक ही मोहल्ले में रहते थे, एक ही स्कूल और एक ही क्लास में एक साथ पढ़ते थे।
बचपन के बाद जवानी भी दोनों पे एक साथ ही आई। जवानी आई तो जवानी की बातें भी अपने आप सूझने लगी। जब छोटी लुल्ली लंड बन गई तो ये ज़रूरत भी महसूस हुई के इस लंड को अब किसी चूत में डाल कर देखा जाए।

ऐसे में ही हमारे दोनों के दिमाग में एक ही लड़की आई, गीता। हमारे पड़ोस में ही रहती थी और हमारे ही स्कूल में पढ़ती थी। उसके पापा की किरयाने की दुकान थी मोहल्ले मे, मगर उसके पापा की स्वर्गवास होने के कारण दुकान उसकी माँ सरला संभालती थी।
हम भी अक्सर उनकी दुकान पर कुछ न कुछ लेने जाते ही रहते थे।

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किशन इस मामले में मुझसे ज़्यादा तेज़ था, मैं थोड़ा शरमीले स्वभाव का था। मगर एक बात थी के गीता पर हम दोनों पूरी लाईन मारते थे, उसको भी पता था। बातों बातों में हमने उसे अपनी अपनी दोस्ती का दावा भी कर दिया था, मगर दोस्ती से आगे उसने कोई
बात बढ़ने नहीं दी। मगर दोनों की ट्राई पूरी चल रही थी के देखो गीता किसके पास सेट होती है। ये फैसला हमने पहले ही कर लिया था, के गीता जिसके पास भी सेट होगी, दूसरे को भी उसकी दिलवानी पड़ेगी, अकेले अकेले नहीं चोदेगा कोई भी।

दिन में अक्सर हम सरला की दुकान पे जाते, जाते तो गीता के लिए मगर सरला को ताड़ आते। चालीस से ऊपर थी, मगर वो भी दमदार थी। वो कभी ब्रा नहीं पहनती थी, हमेशा सादा सा सूती ब्लाउज़ जिसमे उसकी मोटी मोटी चुची ढँकी रहती थी, साड़ी की साइड से दिखता भरवां पेट, और साड़ी में छुपे हुये दो गोल चूतड़।
कभी कभी तो सरला पे भी दिल आ जाता था, के साली यही चुदने को तैयार हो जाए, तो मज़ा आ जाए।

तो एक दिन किशन मेरे पास आया और बोला, 'यार एक बात बतानी है तुझे, आज तो बस वो हुआ के सुन के तू उछल पड़ेगा'।
मगर मेरा दिल बैठ गया, मैंने सोचा ले भाई, गीता तो इस से पट गई, अब अपने लिए तो कुछ नहीं बचा!
फिर भी मैंने पूछा- बता यारा, क्या हुआ, क्या गीता ने हाँ कर दी?
वो बोला- अबे नहीं बे, गीता ने नहीं!
'तो किसी और ने?' मैंने खुश होकर पूछा।
'हाँ' वो बोला।
'किसने, बता भोंसड़ी के?' मैंने ज़ोर दे कर पूछा।

वो बोला- गीता ने नही, गीता की माँ ने!
'क्या?' मेरा तो मुँह खुला का खुला रह गया- सच में? वो कैसे पट गई तुझसे?
'सिर्फ पट नहीं गई, अभी अभी उसे चोद कर आ रहा हूँ!'
उसने कहा तो मानो मेरे पैरों तले से ज़मीन निकल गई।

'कैसे साले बता तो' मैंने पूछा।
'यार, मैं तो, तुझे पता है, गीता के लिए उसके घर दुकान पे आता जाता था, कभी कभी जब गीता दुकान पे बैठती थी, तो मैं जानबूझ कर उसकी माँ की मदद कर देता था, कभी समान शेलफ़ों में लगाना, कभी गोदाम में रखना। बस पिछले हफ्ते की बात है, मैं उसके घर गया, और सरला के साथ गोदाम में अनाज की बोरियाँ रखवा रहा था' वो बोला।

मैंने बड़ी अधीरता से पूछा- फिर क्या हुआ?
'सरला भी सामान रख रही थी, तो उसकी साड़ी का पल्लू सरक गया, और उसकी बड़ी बड़ी विशाल छातियाँ, बिना ब्राके झूलती दिखी, मैं अपना काम छोड़ के उसकी झूलती चूचियाँ घूरने लगा, जब उसका ध्यान मुझे पे पड़ा तो वो मुस्कुरा दी, पर बोली कुछ नहीं, मैंने उसकी इस मुस्कुराहट को उसकी रजामंदी समझ लिया और थोड़ी देर बाद जब वो मेरी तरफ पीठ करके काम कर रही थी, मैंने उसे जाकर पीछे से पकड़ लिया और उसकी दोनों चूचियाँ दबा दी' किशन ने बताया।

'फिर?' मैंने हैरानी से पूछा।
'फिर क्या, मुझे तो डर था कि कहीं वो गुस्सा न करे, मगर उसने तो सिर्फ बड़े प्यार से मुझे हटा दिया, मुझे लगा कि यह तो गुस्सा ही नहीं, मैंने फिर से हिम्मत करके दोबारा उसकी चूचियाँ दबा दी। मैं दबाता रहा और वो न न करती रही, बस फिर तो मैंने अपने लंड को भी उसकी गाँड पे रगड़ना शुरू कर दिया, वो बोली 'रहने दो, कोई आ जाएगा!' मगर मैं नहीं हटा और उसकी चूचियाँ दबाता रहा और अपनी कमर उसकी गाँड पे घिसाता रहा। मगर तभी गीता आ गई, और मुझे उसे छोड़ना पड़ा। मगर मैंने कह दिया 'चाची अब जिस दिन भी मौका लगेगा, उस दिन यह काम मैं पूरा करके जाऊंगा!' उसने बड़ा खुश हो कर बताया।

'तो आज मौका कैसे लगा?' मैंने पूछा।

'अरे आज तो मैं वैसे ही दोपहर को घर पे अकेला बैठा था, सोचा तेरे घर चलता हूँ, रास्ते में आ रहा था, तो सरला को दुकान पे बैठे देखा, मैं उसकी तरफ मुड़ गया, जा कर बात को तो पता लगा कि गीता किसी सहेली के गई है, शाम तक लौटेगी, मैं तो सीधा उसके गोदाम में चला गया और इशारा करके सरला को भी बुला लिया।
उसने दुकान के बाहर गली में देखा और चुपके से उठ कर पीछे गोदाम में आ गई, बस फिर क्या, मैंने आते ही उसे पकड़ लिया, बाहों में भर के मुँह पे, गाल पे, होंठों पे, सब जगह चूम लिया। उसने ने भी अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी।
बस फिर क्या था, मैंने तो बिना कोई और देर किए उसका ब्लाउज़ ऊपर उठाया, अब तुझे पता ही है कि ब्रा तो वो पहनती ही नहीं, बस ये मोटे मोटे चुच्चे बाहर निकाले और चूस दिये। साली बड़ी सिसकारियाँ मार रही थी जब उसके चूचे चूसे मैंने।
मेरा भी लंड तन गया, तो मैंने भी अपना पाजामा और चड्डी उतारी और उसकी साड़ी पेटीकोट ऊपर उठाया, उसे एक गेहूं की बोरी के ऊपर बैठाया और करके टाँगे चौड़ी, रख दिया लंड साली की चूत पर!' उसने अपनी बहादुरी का बखान किया।

मैंने पूछा- फिर क्या किया?
'अरे फिर क्या, बस हल्का सा धकेला और घप्प से सारा लंड अंदर, जिसकी 18 साल की लड़की हो, वो क्या कम चुदी होगी, साली का भोंसड़ा है इतना बड़ा, मगर साली ने जंगल में एक बाल नहीं छोड़ा, सब का सब बिल्कुल सफाचट साफ। 10 मिनट लगे साली को चोदने में' किशन बड़ा गर्व से बोला।

'तो छुड़वाया कहाँ पे, अंदर या बाहर?' मैंने पूछा।
'बाहर, गेहूं की बोरी पे ही गिरा दिया सारा माल!' किशन बोला।
'अरे यार तेरी तो निकल पड़ी, साले अब गीता सिर्फ मेरी है, तू आज के बाद उसपे लाईन नहीं मरेगा, तो माँ को चोद, मैं बेटी को चोदूँगा।' मैंने कहा।

मगर काफी मशक्कत के बाद भी गीता मुझसे नहीं पटी, मैंने एक बार उसे खुल्लम खुल्ला 'आई लव यू' भी बोल दिया, मगर उसने बड़े प्यार से सिर्फ दोस्ती कह कर मेरे प्यार को ठुकरा दिया।
अब मेरे पास तो और कोई चारा ही नहीं था, मैंने सारी बात किशन को बताई।
वो बोला- अब अगर बेटी तुझसे नहीं पटी तो तू उसकी माँ में हिस्सा चाहता है?
मैंने हाँ कहा।

'ओ के.' वो बोला- अबकी बार जब मैं जाऊंगा तो तू चुपके से आ जाना और हमे मौके पे पकड़ लेना और फिर मैं उससे कहूँगा कि मजबूरी है, इसका मुँह भी बंद करना पड़ेगा!

हमने प्रोग्राम बना लिया।
कुछ दिनों बाद ही किशन आया और बोला- मैं सरला को चोदने जा रहा हूँ, तू 5 मिनट बाद आना, और दुकान में मत आना सीधा पीछे गोदाम में आ जाना, ठीक है?
वो मुझे समझा कर चला गया, मगर मेरे लिए 5 मिनट काटने मुश्किल हो गए थे।

करीब 5 मिनट बाद मैं चुपके से अपने घर से निकला, बाहर गर्मी अपने पूरे यौवन पे थी, गली में कोई नहीं था।
मैं धीरे से धड़कते दिल से सरला की दुकान की ओर बढ़ा, दुकान पे पहुंचा, दुकान खुली थी, मगर दुकान में कोई नहीं था।
मुझे पता चला गया कि सरला तो अंदर गोदाम में होगी, मैं बगल वाले दरवाजे को धीरे से खोल कर अंदर चला गया, थोड़ा सा आगे जाने पे गोदाम का दरवाजा था जो बाहर आंगन में खुलता था, वो बंद नहीं था।

मैं धीरे से अंदर गया तो कुछ खुसर पुसर की आवाज़ सुनाई दी।
मैं आगे बढ़ा, तो देखा के गेहूं और चावल की बोरियों के ढेर के पीछे से हल्की हल्की आवाज़ें आ रही थी।
थोड़ा सा आगे झाँकने पर मैंने देखा के किशन खड़ा थ और दो नंगी टाँगे उसके दोनों कंधों पर थी।

मैंने किशन को देखा, उसका पाजामा और चड्डी नीचे पाँव में पड़े थे, सरला चाची दो बोरियों के ऊपर अध लेटी सी लेटी हुई थी और उसने अपनी दोनों टाँगें किशन के कंधों पे रखी थी, ब्लाउज़ ऊपर उठा कर दोनों मोटे मोटे चूचे बाहर निकाल रखे थे, जिन्हें किशन दबा रहा था और चाची की चूत में अपना लंड भी पेल रहा था।

यही मौका था, किशन मुझे देख कर अपने हाथ से हल्का सा इशारा कर दिया और मैं एकदम से सामने आ गया, मुझे देख कर सरला चाची एकदम से हक्की बक्की रह गई, उसने किशन एकदम से धक्का दे कर पीछे किया और उठ कर सीधी खड़ी हो गई, अपनी साड़ी ठीक की और अपना ब्लाउज़ नीचे करके अपने दोनों चूचे ढक लिए।
'तुम, सुनील तुम यहाँ कैसे आए?' उसने हकलाते हुये कहा।

'मैं तो कब से आया, जब से आप दोनों ने यह खेल खेलना शुरू किया था।' मैंने कहा।
'देख यार, अब तुझे पता ही चल गया है, तो किसी को बताना मत!' किशन ने नकली डर जताते हुये कहा।
मैंने कहा- अगर मुझे भी मिलेगी तो मैं तो किसी को नहीं बताऊँगा'।
मगर सरला बोली- नहीं सुनील, तुम तो मेरे बच्चों जैसे हो, तुम्हारे घर हमारा कितना आना जाना है, प्यार है, ऐसा मत बोलो मेरे बच्चे!

वो मेरे पास आई।
मुझे भी लगा के चाची कह तो सच ही रही है मगर किशन ने मुझे पीछे से इशारा कर दिया कि पकड़ ले।
मैंने भी कहा- नहीं चाची, अब मैं नहीं रह सकता, अगर तुम किशन से कर सकती हो तो मुझसे भी करना पड़ेगा!
कह कर मैंने अपने हाथ आगे बढ़ाए और चाची के दोनों चूचे पकड़ लिए।

चाची एक दम से छिटक कर पीछे हो गई- सुनील!
उसने डांटा- यह क्या कर रहे हो?
मगर उसके मोटे मोटे चूचे दबा कर मेरे भी अंदर काम जाग उठा था, मैंने कहा- देखो चाची, अगर मेरे साथ भी करोगी, तो ठीक वर्ना मैं सबको बता दूँगा।

चाची एक बोरी पर बैठ गई।
मैंने किशन की इशारा किया, वो चाची के पास आया और बोला- देखो चाची, जैसा मैं हूँ, वैसा ये है, अब इसने सब देख लिया है, तो इसकी आत्मा को भी शांत कर दो!
कह कर किशन चाची के पास बैठ गया, मैं सामने खड़ा था।

थोड़ा बहुत समझाने के बाद उसने चाची को उठा कर खड़ा किया, चाची बोली तो कुछ नहीं मगर किशन के कहने के अनुसार चलती रही। किशन ने उसे वैसे ही फिर से गेहूं की दो बोरियों के ऊपर बैठाया,

उसकी साड़ी ऊपर उठाई, चाची ने थोड़ा सा विरोध किया, मगर अब वो मजबूर हो चुकी थी, किशन ने थोड़ा सा ज़ोर लगा कर उसकी पूरी साड़ी ही ऊपर उठा दी, दो गेहुआँ रंग की मोटी गुदाज़ टाँगें मेरे सामने प्रकट हुई, मोटी मोटी जांघों के बीच में बड़ी साफ सुथरी शेव की हुई चूत।

चूत देखने का यह मेरा पहला मौका था।
मैंने चाची की साड़ी का पल्लू हटाया, तो किशन ने चाची के ब्लाउज़ के सारे बटन खोल कर दोनों पल्ले अगल बगल हटा दिये, दो बहुत ही गोल, और चिकने चूचे मेरे सामने थे, मैंने उन्हे अपने हाथों से पकड़ के दबा कर देखा।

किशन ने अपना पाजामा फिर से उतारा और अपना लंड फिर से चाची की चूत में धकेल दिया। मगर इस बार चाची का वो पहले वाला मूड नहीं नहीं था।

मैंने सरला चाची के चूचे अपने मुँह में लेकर चूसे- आह, चाची, क्या मज़ेदार चूचे हैं आपके, पी के मज़ा आ गया!
मैंने कहा।

सरला बोली- अरे, जब तू छोटा सा था न, तब भी मैंने तुझे चूची पिलाई थी, ताकि मेरे घर में भी तुझ जैसा बेटा हो, मगर हो गई गीता!
मुझे थोड़ा अजीब सा लगा, मगर मैंने अपने दिल में उठ रहे विचारों को दबा लिया।
किशन बोला- मेरा होने वाला है, तू भी अपना पाजामा उतार, करना है या नहीं?

मैंने झट से अपना पाजामा खोला और चड्डी भी उतार दी, मेरा भी लंड तन के लोहा हुआ पड़ा था।
बस थोड़ी सी चुदाई के बाद 'आह आह' करता किशन झड़ गया, उसने अपना लंड बाहर निकाला तो उसका सारा वीर्य नीचे गेहूं की बोरी पे गिर गया।

वो पीछे हटा तो चाची भी उठने लगी, मगर मैंने रोक दिया- अरे अरे चाची अभी नहीं, अभी मुझे भी तो मज़ा दो!
कह कर मैंने अपना लंड अपने हाथ में पकड़ कर चाची की चूत पे रखा, अब पहली बार था, मैं ज़ोर लगाऊँ मगर लंड अंदर न जाये। चाची हंस कर बोली- अरे रुक न, कहाँ डाल रहा है' कह कर उसने मेरा लंड पकड़ा और सेट करके रखा- अब डाल!
वो बोली।

मैंने आगे को धकेला तो मेरा लंड चाची की चूत में घुस गया।
किशन ने मेरे दोनों चूतड़ों पे हाथ रखे और आगे को धकेल दिया, तो मेरा बाकी का लंड भी चाची की चूत में घुस गया। क्या मज़ेदार काम था। जैसे मैंने ब्लू फिल्मों में देखा था और मुझसे पहले किशन को करते देखा था, उसी तरह मैं भी शुरू हो गया।

बेशक चाची की चूत पानी से गीली गीली और ढीली ढीली सी थी। मगर मेरे पहले अनुभव के लिए तो ये भी बहुत था। मैं भी किशन की तरह चाची के दोनों चूचे पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा और 4-5 मिनट में ही मेरा पानी छुट गया।
मैं चाची को बताना भूल गया और बहुत सारा मेरा माल चाची की चूत के अंदर ही झड़ गया। खैर चाची के कहने पे मैंने एकदम से अपना लंड बाहर निकाला।

दाई के बाद मैं और किशन दोनों मेरे ही घर आ गए और अपने अपने तजुर्बे की बात करने लगे के कैसा लगा, कैसा रहा। उसके बाद तो हम दोनों अक्सर चाची की चुदाई करने जाते रहे।

जब 2-4 बार मैंने चाची की चुदाई कर ली तो फिर सरला चाची ने मेरी काम शिक्षा शुरू की, मुझे ढंग से चोदना सिखाया, चूची चूसना, होंठ चूमना, जीभ चूसना, चूत चाटना, लंड चुसवाना, कैसे देर तक औरत को पेला जाए और कैसे अपना माल झड़ने से बचना चाहिए, सब सिखाया चाची ने।
और आज उसी चाची की शिक्षा के कारण मैं अपनी घर गृहस्थी बड़े मज़े से चला रहा हूँ, और मेरी बीवी भी मुझसे बहुत खुश है।
 
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