जिस्म की जरूरत-17

Discussion in 'Hindi Sex Stories' started by 007, Jan 30, 2018.

  1. 007

    007 Administrator Staff Member

    //8coins.ru desi sex विजय रूम में आ गया था, और मुहे इस तरह नंगा देखकर मुस्कुरा रहा था। विजय का गठीला बदन बेहद आकर्षक लग रहा था, उसने अपनी शर्ट की स्लीव कोन्ही तक ऊपर चढा रखी थी। उसका इस तरह मुझे दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत बोलना मुझे रोमांचित कर गया, और मेरे दिमाग में आ रहे सारे शको-शुभा दूर हो गये। जैसे ही हम दोनों की नजर आपस में टकरायीं, मेरे बदन में खुशी की एक लहर सी दौड़ गयी। नंगे बदन इठला कर चलते हुए मैंने अपने आप को विजय की मजबूत बाँहों में समर्पित कर दिया।

    ***

    "आ गया विजय बेटा?" मैंने विजय के गले में अपनी बाँहें डालते हुए कहा, विजय ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और वो मेरी नंगी पींठ और मेरी गाँड़ की मोटी मोटी गोलाईयों पर हाथ फ़िराने लगा।

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    "हाँ बस अभी आया," विजय अपनी पैण्ट में लण्ड के बने तम्बू को मेरी चूत के अग्रभाग पर दबाते हुए बोला। उसकी उँगलियां मेरे गदराये नंगे बदन को मेहसूस कर रही थीं। "अब और इन्तजार नहीं होता मम्मी।"

    "आह्ह, मेरा बेटा!" मैं घुटी हुई आवाज में बोली, विजय की आँखों में वासना के लाल डोरे तैरते हुए देख मुझे बेहद अच्छा लग रहा था। अपने आप को विजय को समर्पित करते हुए, मैंने उसे किस करने के लिये अपनी ओर खींच लिया।

    हम दोनों एक दूसरे को इस तरह बेतहाशा चूमने लगे मानो कितने समय बाद मिले हों। चूमना बंद करते हुए जब मैंने विजय की चौड़ी छाती को नंगा करने के लिये उसकी शर्ट के बटन खोलने शुरू किये तो मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा और मेरी साँसें उखड़ने लगी।

    जब विजय अपनी बैल्ट को खोल रहा था, तो मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठकर उसकी पैण्ट के हुक को खोलकर उसकी चैन खोलने लगी। मैंने अपना गाल उसके अन्डरवियर में लण्ड के बने तम्बू पर फ़िराते हुए कहा, "अपनी मम्मी को उतारने दो बेटा।"

    मैंने एक झटके में उसकी पैण्ट और अन्डरवियर को नीचे खींच दिया जिससे उसका फ़नफ़नाता हुए लण्ड बाहर निकल आया, और फ़ुंकार मारने लगा। जैसे ही मैंने उसके लण्ड के सुपाड़े पर अपना गाल छूआ, उसके लण्ड से निकल रहे चिकने लिसलिसे पानी से मेरा गाल गीला हो गया।

    मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और एक संतुष्टीभरी गहरी साँस लेकर मैं विजय के लण्ड को स्वादिष्ट लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। जब मैं अपने मुलायम होंठों को अपने बेटे विजय के तने हुए लण्ड, जिसकी नसें फ़ूल रही थीं, उस पर दबाकर हल्के हल्के कामुक अंदाज में चूम रही थी तो मेरी चूत की प्यास किसी रण्डी की तरह बलवती होने लगी थी, और मेरी चूत की फ़ांकें, चूत के रस से पनियाने लगी थी। विजय के मोटे लण्ड को अपने होंठों के बीच लेकर मुझे बहुत मजा आ रहा था। सब कुछ भूल कर मैं अपने बेटे के लण्ड से निकल रहे चिकने पानी की बूँदों को अपनी जीभ से चाट रही थी, और उसके आकर्षक लण्ड की पूरी लम्बाई पर अपनी जीभ फ़िराते हुए पर्र पर्र की आवाजों में डूबी जा रही थी।

    जैसे ही विजय के लण्ड को उसकी मम्मी ने जड़ से पकड़ कर, चूमते चाटते हुए धीमे धीमे मुठियाना शुरू किया तो विजय के मुँह से कामक्रीड़ा के आनंद से भरी आह ऊह की आवाज निकलने लगी। हमेशा की तरह विजय को अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसाकर चुसवाने में बेहद मजा आ रहा था। लेकिन उस दिन मैं उसके लण्ड को सॉफ़्ट और सैक्सी अंदाज में, उसके लण्ड को थूक से गीला करके, जीभ से नीचे से ऊपर तक चाटते हुए चूस रही थी। मैंने बस उसके लण्ड का सुपाड़ा ही मुँह के अंदर लिया था, लेकिन उतना ही बहुत था। अपनी माँ से अपने लण्ड को चुसवाते हुए विजय अपने हाथों की उँगलियों से मेरे बालों में कंघी करने लगा, और मेरे बालों को मेरे कान के पीछे कर दिया, जिससे वो अपनी मम्मी का खूबसूरत चेहरा देखते हुए, अपने लण्ड को अपनी मम्मी के मुँह में घुसा कर होंठों के बीच अंदर बाहर होता देखने का आनंद ले सके।

    कुछ देर बाद मैं इस कदर चुदासी हो चुकी थी कि मुझसे और ज्यादा बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था। मेरे चूसते रहने के कारण विजय के लण्ड से चिकने पानी की बूँदें रह रह कर बाहर आ जातीं, और मैं हर बूँद का चाट लेती, लेकिन उन चिकने पानी की बूँदों को देखकर मेरी चूत विजय के लण्ड के वीर्य के पानी के लिये तरस उठती। विजय के लण्ड से निकले वीर्य को पीने की चाह के आगे मैं हार गयी, और फ़िर मैने विजय के लण्ड के बैंगनी रंग के लण्ड के सुपाड़े को अपने होंठों के बीच लेकर उसके थूक से सने पूरे लोहे जैसे सख्त लण्ड को अपने मुँह के अंदर ले लिया।

    जैसे ही विजय के लण्ड का सुपाड़ा मेरे गले से जाकर टकराया, उसने मेरे सिर को पकड़ लिया और उसकी आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गयीं। उसका लण्ड जो मैंने जड़ से पकड़ रखा था, उसको छोड़ दिया, और उसके लण्ड को मेरे गले में अंदर तक घुस जाने के लिये आजाद कर दिया, अब मेरे होंठ उसके लण्ड की जड़ पर टकरा रहे थे। विजय का लण्ड पूरा अपने मुँह में लेकर, मैं अपने एक हाथ को अपनी चूत के फ़ूले हुए दाने पर ले जाकर उसको घिसने लगी, और दूसरे हाथ को विजय की गाँड़ पर रखकर उसको अपनी तरफ़ खींचने लगी। कुछ सैकण्ड ऐसे ही विजय के लण्ड को पूरा अपने मुँह में रखकर, उसको फ़िर से अपने मुँह में अंदर बाहर करके फ़िर से उसको मुँह से चोदने लगी।

    अपनी मम्मी के गर्म गर्म मुँह में अपने लण्ड को घुसाकर विजय जन्नत की सैर कर रहा था। मेरे सिर को अपने हाथों से पकड़े हुए, विजय अपनी गाँड़ को आगे पीछे करने लगा, और मेरे मुँह की चुदाई के साथ ताल में ताल मिलाने लगा। और कुछ देर बाद विजय बुदबुदाया, "मैं झड़ने ही वाला हूँ. मम्मी."

    जैसे ही विजय के लण्ड से निकली वीर्य की पिचकारी मेरे गले से जाकर टकरायी, मैंने अपनी उँगली चूत के दाने को मसलते हुए, चूत में अंदर तक घुसा दी, और विजय के साथ मैं खुद भी झड़ गयी। विजय के लण्ड से मेरे गले में जो घुटन हो रही थी, वो मुझे और ज्यादा मजा दे रही थी। विजय का लण्ड मेरे मुँह में पूरा घुसा हुआ था, और वीर्य की पिचकारी पर पिचकारी मेरे गले में छोड़े जा रहा था, जिसको मैं साथ साथ निगले जा रही थी।

    जब विजय का लण्ड फ़ड़कना बंद हो गया, और मैंने उसके लण्ड से निकली वीर्य की आखिरी बूँद चाट ना ली, तब जाकर मैंने उसके लण्ड को अपने होंठों के बीच से नहीं निकलने दिया। और फ़िर सारा वीर्य चाटने के बाद मैंने उसकी गोलीयों को टट्टों के ऊपर से चूम लिया, और फ़िर अपने होंठों पर जीभ फ़िराकर साफ़ करते हुए मैंने विजय की तरफ़ देखा।

    "वाह मम्मी मजा आ गया," अपनी मम्मी को लण्ड से निकलती वीर्य की आखिरी बूँद चाटते हुए देख विजय बोला, "इतना अच्छा वाला तो पहली बार झड़ा हूँ!" विजय जब ये बोल रहा था, तो मैंने अपने घुटनों के बल बैड पर बैठते हुए, उसके सिंकुड़ते हुए लण्ड को अपने मम्मों के बीच दबा लिया।

    "मुझे भी बहुत मजा आया बेटा!" मैंने कहा, और फ़िर उसके लण्ड को अपने मम्मों के बीच लेकर, मम्मों को उसके लण्ड ऊपर नीचे करने लगी, और बीच बीच में उसके सुपाड़े के अग्र भाग को अपनी जीभ से चाट लेती, मैं उसके लण्ड को खड़ा ही रखना चाहती थी। विजय ने अपने हाथों से मेरे मम्मों को साइड से पकड़कर, लण्ड के ऊपर दबाते हुए, मेरे मम्मों को चोदने लगा। इस बीच मेरा भी एक हाथ मेरी चूत पर पहुँच गया, और मैं उस हाथ की ऊँगलियों को चूत की पनिया रही फ़ाँकों पर लगे जूस से गीला करने लगी।

    "ये देखो?" मैंने विजय को अपनी चुत में डूबी ऊँगली दिखाते हुए कहा। और विजय की वासना में लिप्त आँखों के सामने ही अपनी जीभ से चाटकर साफ़ कर दिया, और मेरी जीभ विजय के लण्ड से निकले वीर्य और मेरी चूत के रस के मिश्रित स्वाद का मजा लेने लगी।

    विजय ऐसा होता देख और ज्यादा उत्तेजित हो गया, और तेजी से अपने लण्ड को मेरे मम्मों के बीच की दरार में अंदर बाहर करने लगा। अपने बेटे के लण्ड को अपने मम्मों के बीच की मुलायम खाई में फ़ँसाकर, मैं एक बार फ़िर से अपनी ऊँगली से चूत से टपक रहे रस में भिगोने लगी। और एक बार फ़िर से मादक आवाज निकालते हुए और विजय को तरसाते हुए उस ऊँगली को चाटा तो विजय गुर्राते हुए और जोरों से मेरे मम्मे चोदने लगा।

    विजय का लण्ड हर सैकेण्ड और ज्यादा कड़क होता जा रहा था, और मैं उसे अपनी मादक और कामुक अदाओं से और ज्यादा तरसा रही थी। "म्म्म्म्ह्ह्ह्. टेस्टी है," मैं कामुक अंदाज में बोली, और चूत के रस में गीली दूसरी ऊँगली को अपने होंठों पर रख लिया, "तुमको पता है, मेरी चूत का रसीला पानी बहुत टेस्टी है. और अब तुम्हारे वीर्य से मिक्स होकर तो और भी ज्यादा अच्छा लग रहा है, बेटा।"

    "हाँ मुझे पता है मम्मी," मेरे मम्मों के बीच अपने लण्ड को जोरों से पेलता हुआ विजय बोला, "आपकी चूत तो वाकई में बहुत टेस्टी है मम्मी।" और एक पल के लिये मेरे मम्मों को चोदना रोक कर वो बोला, "मेरा तो मन कर रहा है अभी इसी वक्त आपकी चूत के रस को थोड़ा चाट ही लूँ।

    इससे पहले की मैं सम्भल पाती, विजय ने मेरी टाँगों के बीच अपना चेहरा घुसा दिया, और अपने होंठों से मेरी चूत की फ़ाँकों पर लगे रस को अपनी जीभ से चाटने लगा। लेकिन ऐसा करते हुए उसको संतुष्टी नहीं मिली, तो विजय ने मुझे गोदी में उठा लिया, और मेरे गुदाज माँसल चूतड़ों को मसलते हुए मुझे बैड पर लिटा दिया। मैं किसी कच्ची कुँवारी लड़की की तरह उसकी इस हरकत से अचम्भित होते हुए खिलखिलाने लगी।

    जैसे ही मैं बैड पर लेती, मैंने अपनी टाँगें फ़ैला कर चौड़ी कर दिया, और जैसा वो चाहे वैसा करने के लिये, विजय के सामने मैंने अपने आप को प्रस्तुत कर दिया। विजय के फ़ुँकारते हुए लण्ड को देखकर, मेरे मन में जल्द से जल्द उसको अपनी चूत में घुसवाने का मन करने लगा, और इसी इच्छा में मैं अपने होंठों को अपने दाँतों से काटने लगी। हाँलांकि उस वक्त विजय मन ही मन कुछ और ही करने की सोच रहा था।

    "आप तो बहुत ज्यादा पनिया रही हो मम्मी!" विजय मेरी केले के तने मानिंद चिकनी जाँघों पर हाथ फ़िराते हुए, मेरी टाँगों के बीच आते हुए बोला। विजय मेरी पनिया कर रस से भीगी हुई चूत की दोनों फ़ाँकों और चूत के दाने को देखकर विस्मित हो रहा था। एक पल को उसकी नजर मेरी परोसी हुई सुंदर चूत से हटकर, ऊपर फ़ूले हुए चूत के दाने पर जाकर टिक गयी, और फ़िर वो मेरे शर्मा कर लाल हुए चेहरे को देखने लगा।

    "मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि मैं अपने जीवन में पहली बार किसी चूत को चोदने जा रहा हूँ," वो वासना में डूबकर उत्तेजित होकर हाँफ़ते हुए बोला, उसको अभी भी अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था। "और वो चूत भी किसी और की नहीं आपकी है, मम्मी, बहुत मजा आ रहा है।"

    अपने मम्मों को अपने हाथों से मसलते हुए, और अपनी टाँगों को और ऊपर उठाकर चौड़ा करते हुए, मैं अपने बेटे के सामने अपनी चूत चोदने के लिये परोस रही थी, मैंने फ़ुसफ़ुसाते हुए कहा, "हाँ. बेटा. हाँआआ. चूस लो, चोद लो अपनी मम्मी की चूत को, जैसे चाहे जो चाहे कर लो बेटा हाँआआ!"

    जैसे ही विजय अपनी जीभ लपलपाता हुआ मेरी चूत की तरफ़ बढा, मैं आनंदातिरेक में आहें भरने लगी। और जैसे ही उसने मेरी चूत को चाटना शुरू किया, मेरी आँखें स्वतः ही बंद हो गयी और मेरा पूरा बदन उत्तेजना में काँपने लगा। उसने मेरी चूत की दोनों फ़ाँको को अपने मुँह में भर लिया, और सपर सपर कर मेरी चूत को चुमते हुए चूसने लगा। बेहद उत्तेजित होने के कारण, कुछ ही सैकण्ड में मेरी चूत ने झड़ते हुए विजय के मुँह पर ही पानी छोड़ दिया, और मैं चरमोत्कर्ष पर पहुँचते हुए अपनी निप्पल को मींजते हुए जोर जोर से आहें भरने लगी।

    "ओह्ह्ह्ह्ह्. विजय बेटाआआ, हाँआआआ.!"

    जैसे ही मैं अपनी गाँड़ को उठाकर उसके खुले मुँह की तरफ़ उछालने लगी, विजय पागलों की तरह अपनी मम्मी की चूत को चाटकर खाने लगा, और बरसों से किसी चूत के रस के प्यासे की तरह चूत के पानी को पीने लगा। चूत के रस का स्वाद, मेरा कामुक अंदाज में कराहना, और अंततः अपनी मम्मी की चूत में लण्ड घुसाकर चोदने की आशा के साथ विजय मेरी चूत को दोगुने जोश के साथ चूसने लगा, और फ़िर उसने पहले एक और फ़िर दूसरी ऊँगली मेरी चूत में घुसा दी।

    "हाँ बेटा, ऐसे ही!" मैं धीमे से बोली, लग रहा था कि मैं फ़िर से झड़ने वाली थी। "बस ऐसे ही. ऐसे ही ऊँगली घुसाते रहो, बस ऐसे ही चाटते रहो! आहह्ह. तुम तो बहुत अच्छे से मजा दे रहे हो बेटा, अपनी मम्मी को!"

    विजय पहले भी कई बार मेरी चूत को चूस और चाट चुका था, इसलिये वो मेरी हर हरकत से वाकिफ़ था, इसलिये इससे पहले कि मैं एक बार और झड़ जाती, विजय ने मेरी चूत को चाटना बंद कर दिया। मैं एक पल को नाखुश हो गयी। लेकिन फ़िर जैसे ही विजय ने अपनी जीभ से मेरी चूत के दाने को सहलाया, मेरे सारे बदन में एक तरंग सी दौड़ गयी और मेरे मुँह से जोर की आहह्ह निकल गयी।

    "आह विजय बेटा!" मैं आनंदातिरेक में पूरे बदन को हिलाते हुए बोली, मेरा बेटा जो मजा मुझे दे रहा था वो अविस्मर्णीय था। जैसे ही विजय ने मेरी चूत में दो ऊँगलियाँ घुसाकर, चूत के दाने को अँगूठे से मसलना शुरू किया, मैंने बैडशीट को अपनी मुट्ठी में भर कर पकड़ लिया, और चीखते हुए बोली, "आह्ह्ह्ह मेरा बेटा. हे भगवान."

    जब विजय ने मेरी चूत में ऊँगली घुसाना और जीभ से चाटना बंद किया, तब वासना मुझ पर पूरी तरह हावी हो चुकी थी। जब मैंने अपनी मस्ती में बंद आँखो को खोला तो विजय को मेरे चेहरे की तरफ़ देखते हुए पाया। जब वो मेरी नंगी गोरी चिकनी चौड़ा कर फ़ैली हुई टाँगों के बीच झुका तो उसके मुँह और ठोड़ी पर मेरे चूत का रस लगा हुआ था, और उसका लण्ड फ़नफ़ना रहा था।

    "आप बहुत मस्त हो मम्मी, झड़ते हुए आप एक दम मदमस्त हो जाती हो," वो मेरी जाँघों को सहलाते हुए मुस्कुराते हुए बोला।

    "मूउआआ. मेरा प्यारा बेटा," मैं बुदबुदाई। "तू तो मेरा बहुत प्यारा बेटा है, मेरी कितनी तारीफ़ करता है और कितना अच्छा सैक्स करता है, मैं तो झड़ने को मजबूर हो जाती हूँ बेटा!"

    ये सुनकर वो थोड़ा हँसा, मैं भी उसके साथ हँस पड़ी। मैंने उसकी नजर को मेरे चेहरे से हटकर मेरे मम्मों को घूरते हुए पाया, और उसके लण्ड को चूत की लालसा में फ़ुँकार मारते हुए देखकर मुझे मन ही मन खुशी हो रही थी। वो थोड़ा गम्भीरता से बोला, "सचमुच मम्मी, मुझे आपके साथ प्यार, सैक्स करने में बहुत मजा आता है। जब आप झड़ती हो ना, तब आप के चेहरे पर सुकून और प्रसन्नता देखकर मुझे अच्छा लगता है।

    उसकी आवाज में और आँखों मुझे सच्चाई प्रतीत हो रही थी, और शब्द मानो उसके दिल से निकल रहे थे। मैंने उसकी बात सुनकर सहमती में बस "हाँ बेटा," ही बोल पायी। मैं उसके प्यार का कोई सबूत नहीं माँग रही थी, लेकिन उसकी बातें मुझे अच्छी लग रही थीं। अपनी बाँहें फ़ैलाकर और टाँगें चौड़ी कर के मैं उसको आमंत्रित करने लगी, और मुस्कुराते हुए फ़ुसफ़ुसाते हुए बोली, "आ इधर आ, चिपक जा मुझसे, जकड़ ले मुझे।"

    विजय ने मेरे ऊपर आते हुए, अपनी माँ के खूबसूरत गठीले बदन को अपनी बाँहों में भर कर जकड़ लिया, और मैं भी उससे लिपट गयी। हमारे होंठ स्वतः ही पास आ गये, और हम दोनों प्रगाढ चुंबन लेने लगे। मेरे मम्मे उसकी छाती से दब रहे थे, मैं चूमते हुए कराह रही थी और उसका लण्ड मेरी पनियाती चूत के मुखाने पर टकरा रहा था। जब हम माँ बेटे कामक्रीड़ा में मस्त थे, तब मैं अपनी गाँड़ को ऊपर ऊँचकाते हुए अपनी चूत की दोनों भीगी हुई फ़ाँकों को उसकी लण्ड की पूरी लम्बाई पर घिसते हुए, फ़ड़क रहे चूत के दाने को लण्ड के दबाव से मसलने लगी। ऐसा करते हुए हम दोनों मस्ती में डूबकर, एक दूसरे के जिस्म की जरूरत को पूरा करने का मनोयोग से प्रयास कर रहे थे। मेरी चूत में तो मानो आग लगी हुई थी।

    अब और ज्यादा बर्दाश्त करना मेरे लिये असम्भव होता जा रहा था। मैंने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर विजय के लण्ड को पकड़कर उसके सुपाड़े को मेरी चूत के मुखाने का रास्ता दिखाने लगी। जैसे ही उसके लण्ड ने पहली बार किसी चूत के छेद को छुआ तो विजय गुर्राने लगा। उसने मेरी टाँगों को थोड़ा और फ़ैला कर चौड़ा किया, जिससे उसको मेरी पनिया रही चूत में लण्ड घुसाने में आसानी हो सके।

    "आह मम्मी." वो हाँफ़ते हुए बोला, और फ़िर अपने होंठों को मेरे होंठों से दूर करते हुए, मेरी आँखों में आँखें डालकर देखने लगा। "मम्मी." उसके लण्ड का सुपाड़ा मेरी चूत के छेद की मुलायम, गीली गोलाई को अपने साइज के अनुसार खुलने पर मजबूर कर रहा था, विजय बुदबुदाते हुए बोला, "आप बहुत अच्छी मम्मी हो, आई लव यू, मम्मा!"

    "मैं भी तुझे बहुत प्यार करती हूँ बेटा," मैं उसके होंठों पर अपने होंठ रखकर प्यार से बारम्बार चूमते हुए बोली। जब मैंने अपनी टाँगें विजय की मजबूत पींठ के गिर्द लपेटीं, और उसको अपनी तरफ़ खींचा, जिससे उसका लण्ड पूरा मेरी चुदने को बेकरार चूत में घुस सके, तो एक बार को तो मानो मेरी साँस ही रुक गयी।

    जैसे ही मेरी चूत के अंदरूनी होंठों ने खुलते हुए उसके लण्ड के अंदर घुसने के लिये रास्ता बनाया, और फ़िर ईन्च दर ईन्च अंदर घुसने लगा, तो हम दोनों कराह उठे। जब हम दोनों एक दूसरे की जीभ के साथ चूमा चाटी कर रहे थे, तब विजय का मोटा लण्ड आराम से मेरी पनिया रही चूत में धीमे धीमे अंदर घुस रहा था।
     
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