भाभी तेरा भाई दीवाना.

Discussion in 'Hindi Sex Stories' started by 007, Dec 1, 2017.

  1. 007

    007 Administrator Staff Member

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    आखिर मन बनाया कि कुछ दिन के लिए अपने मायके जोधपुर जा आती हूँ। पतिदेव को फोन करके बता दिया कि मैं जोधपुर जा रही हूँ और फिर बस पकड़ कर जोधपुर के लिए रवाना हो गई। बस की भीड़भाड़ में लोगों के स्पर्श का आनन्द लेती हुई जोधपुर पहुँच गई।

    घर पहुँच कर सबसे मिलने के बाद मैं नहाने चली गई। करीब आधा घंटा ठन्डे ठन्डे पानी का मज़ा लेने के बाद जब मैं बाथरूम से बाहर आई तो देखा कि भाभी का भाई विजय आया हुआ था।

    हम दोनों एक दूसरे को देख कर बहुत खुश हुए। मैं जानती थी कि विजय तो भाई की शादी के समय से ही मेरा दीवाना है और मुझे भी विजय बहुत पसंद था। आखिर विजय था भी तो बहुत स्मार्ट।

    लगभग छ: फुट का हट्टा कट्टा नौजवान था विजय। बाकी लड़कियों का तो पता नहीं पर मैं तो विजय पर फ़िदा थी। यह अलग बात है कि ना तो मैंने और ना ही विजय ने कभी अपनी चाहत का इज़हार किया था। विजय की भी शादी हो चुकी थी और वो सुखी जीवन व्यतीत कर रहा था।

    खैर विजय को देखते ही मेरे मन में हलचल होने लगी थी और चूत भी खुशी के आँसू टपकाने लगी थी और मेरी पेंटी को गीला करने लगी थी। आखिर पूरी चुदक्कड़ जो बन चुकी थी मैं।

    शाम को मैं भाई भाभी के साथ उनके कमरे में बैठी बातें कर रही थी, तभी विजय भी नहा धोकर हमारे पास आकर बैठ गया। मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने हँस कर मेरी नजर का जवाब दिया। हम सब बैठे बातें कर रहे थे पर मेरी नजर बार बार विजय की तरफ घूम रही थी। मैंने महसूस किया कि विजय भी मुझे ही घूर रहा था।

    तभी भाई का फोन आया और वो उठ कर चला गया। विजय भी उठ कर दूसरी तरफ बैठने लगा तो मेरी नजर अपनी मनपसंद चीज की तरफ चली गई और वो चीज नजर आते ही मेरे मुँह से आह निकल गई।

    विजय का लण्ड पजामे में लटक रहा था। विजय ने शायद पजामे के नीचे अंडरवियर नहीं पहना था। माल मतलब का लग रहा था। वो तो भाभी पास में बैठी थी इसीलिए मैं कण्ट्रोल कर रही थी। वैसे तो दिल कर रहा था कि अभी जाकर विजय का लण्ड पकड़ कर मसल दूँ।

    एक तो चुदाई करवाए कई दिन हो गए थे, दूसरा विजय का लण्ड देखकर चूत में खुजली होने लगी थी। ऐसे ही तड़पते तड़पते शाम हो गई और फिर रात, पर बात आगे नहीं बढ़ पाई थी। मुझे मौका ही नहीं मिल रहा था विजय से खुल कर बात करने का। पूरी रात तड़प तड़प कर काटनी पड़ी।

    सुबह होते ही विजय वापिस जाने लगा। उसने बातों बातों में बता दिया कि वो जयपुर होते हुए जाएगा। विजय के मुँह से जयपुर होते हुए जाने की बात सुनकर मेरे दिमाग में चुदवाने की योजना बनने लगी। मैंने विजय को कुछ देर रुकने को कहा। मैं अपनी माँ के पास गई और उसको झूठ बोल दिया कि पतिदेव का फोन आया है और मुझे आज ही वापिस जाना पड़ेगा।

    माँ ने कहा- अगर जाना ही है तो विजय के साथ ही चली जाओ वो तुम्हें जयपुर छोड़ कर आगे चला जाएगा।

    मैं तो पहले से ही यही मन बनाए बैठी थी तो भला मैं कैसे मना कर देती। मैंने झट से अपना बैग तैयार किया और विजय के साथ वापिस जयपुर आने के लिए चल पड़ी।

    यह लण्ड का चस्का होता ही ऐसा है दोस्तो।

    विजय की गाड़ी में बैठ कर जैसे ही सफर शुरू हुआ, मेरी चूत के कीड़े सक्रिय हो गए। मैंने विजय से बातचीत शुरू कर दी।

    "विजय. कल तुम मुझे घूरे क्यों जा रहे थे. अगर भाभी देख लेती तो."

    "अरे मैं कहा घूर रहा था. घूर तो तुम रही थी."

    "अच्छा जी. बहुत चालू हो तुम." मैं कहकर हँस दी।

    विजय ने गाड़ी का गियर बदलने के बहाने से हाथ बढ़ाया और मेरा हाथ पकड़ कर बोला. "शालू. तुम बहुत खूबसूरत हो. पता है जब पहली बार तुम्हें देखा था, तभी मैंने अपना दिल तुम्हारे नाम कर दिया था.. पर तुम मेरी किस्मत में ही नहीं थी."

    विजय के हाथ के स्पर्श से मेरे अंदर बिजली दौड़ गई।

    "मैं भी तुम्हें बहुत पसंद करती हूँ विजय." मैंने विजय के हाथ को दबाते हुए कहा तो विजय का चेहरा खिल उठा।

    अब तो जयपुर बहुत दूर महसूस होने लगा था। मन कर रहा था कि जल्दी से जयपुर पहुँच कर विजय के मोटे लण्ड से चुद जाऊँ। विजय का हाथ भी अब आगे बढ़ गया था और अब मेरे कंधे से होते हुए मेरी चूचियों को अपनी गिरफ्त में लेने की कोशिश कर रहा था। कुछ देर कंधा सहलाने के बाद विजय ने मेरी चूची को पकड़ लिया और ब्लाउज के ऊपर से ही सहलाने लगा।

    चूची पर विजय का हाथ लगते ही मेरी तो चूत गीली हो गई थी। मैंने भी शर्म छोड़ी और हाथ बढ़ा कर पेंट के ऊपर से ही विजय का लण्ड सहलाने लगी। लण्ड में तनाव आने लगा था। मैंने जिप खोली और विजय का लण्ड बाहर निकाल लिया।

    लण्ड बहुत मस्त था विजय का। बहुत लंबा और मोटा भी बहुत था।

    लण्ड देख कर मेरी चूत चुदने को बेचैन हो गई। गाड़ी कब जयपुर पहुँचेगी यह सोच सोच कर परेशान हो गई थी। खैर कण्ट्रोल तो करना ही था। चूची मसलवाते और लण्ड को सहलाते सहलाते आखिर जयपुर आ ही गया।

    घर पहुँचते ही मैंने झट से बैग एक तरफ फेंका और दरवाजा बंद करने लगी। तभी विजय ने पीछे से मुझे पकड़ कर अपने से चिपका लिया और मेरी गर्दन और कंधों पर चूमने लगा। आग तो पहले से ही लगी हुई थी सो झट से पलटी और विजय के होंठों पर अपने होंठ रख दिए। विजय भी पागलों की तरह मुझे चुम्बन करने लगा।

    चूमाचाटी करते करते उसके हाथ मेरे कपड़ों को कम करने लगे। पहले ब्लाउज फिर साड़ी और पेटीकोट एक साथ धरती पर पड़े थे। ब्रा और पेंटी में मैं विजय की बाहों में झूल रही थी और वो मेरे बदन को बेहताशा चूम रहा था।

    जब तक मैंने उसकी पैंट खोली, उसने मेरी ब्रा भी मेरे बदन से अलग कर दी।

    मैंने भी उसकी पेंट और अंडरवियर नीचे खींच दिया। उसका लगभग नौ इंच लंबा लण्ड सर उठाकर खड़ा हो गया। मैं उसका लण्ड हाथ में लेकर सहलाने लगी। विजय भी मेरी मस्ती के मारे तनी हुई चूचियों को अपने मुँह में लेकर चूसने और चुम्भलाने लगा।

    जब वो चूची के चुचक को अपने दांतों से काटता, दर्द चूत की गहराई तक महसूस होता और मैं मस्त हो जाती। जो चुदवाती है उनको इस मजे का एहसास जरूर होगा।

    विजय ने मुझे अपनी मजबूत बाहों में उठाया और सोफे पर लेटा दिया। मेरे नंगे बदन को चूमते हुए उसने मेरी पेंटी भी उतार दी। मेरी नंगी चूत के दर्शन होते ही विजय भी मदहोश सा हो गया और एक क्षण देखने के बाद उसने अपने होंठ मेरी रसीली चूत पर लगा दिए। अपनी लंबी सी जीभ के साथ विजय मेरी चूत चाटने लगा। गोल गोल घुमा कर जीभ से मेरी चूत के हर हिस्से को चाट रहा था और मैं मस्ती से पागल हुई जा रही थी।

    "खा जा मेरे राजा.. चाट ले सारा रस मेरी चूत का. आज ये चूत तेरी हुई." मैं मस्ती के मारे बड़बड़ा रही थी। विजय मेरी चूत का रस अपनी जीभ से निकालने की भरपूर कोशिश कर रहा था जिससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।

    कुछ देर चूत चाटने के बाद विजय ने अपना लण्ड मेरे होंठों से लगाया तो मैंने भी विजय के लण्ड को चूस चूस कर निहाल कर दिया। अब तो हम दोनों चुदाई के लिए तड़प उठे थे इसीलिए अब और इंतज़ार करना मुश्किल था। विजय ने सोफे पर ही मेरी गाण्ड के नीचे एक तकिया लगाया जिससे मेरी चूत उभर कर ऊपर की और हो गई। मेरी सफाचट चिकनी चूत अब लण्ड लेने के लिए मुँह खोल कर तैयार थी। विजय ने अपने मोटे लण्ड का सुपाड़ा चूत के मुहाने पर लगाया और एक जोरदार धक्के के साथ चुदाई का आगाज़ किया। पहले धक्के में आधे से ज्यादा लण्ड चूत की दीवारों को रगड़ता हुआ चूत की गहराई में उतर गया। अगले ही क्षण दूसरा धक्का लगा कर विजय ने पूरा लण्ड चूत में जड़ तक गाड़ दिया।

    विजय एक पल के लिए रुका और फिर जब चुदाई शुरू की, तो दुरंतो एक्सप्रेस की स्पीड भी उसके सामने कम पड़ गई। सटासट धक्के लगा लगा कर विजय मेरी चूत चोद रहा था। हर धक्के के साथ विजय के अंडकोष मेरी गाण्ड से टकरा टकरा कर फट फट की एक मधुर आवाज पैदा कर रहे थे और चूत से फच्च फच्च की आवाज उसकी ताल से ताल मिला रही थी।

    "चोद मेरे राजा.चोद अपनी रानी को. फाड़ दे अपनी रानी की चूत. मिटा दे सारी खाज इस कमीनी चूत की.चोद साले जोर जोर से चोद.आह्ह्ह उम्म्म्म आह्ह्ह ओह्ह्ह.चोद चोद और चोद. चोद." मैं मस्त हुई चिल्ला रही थी और विजय अपने पूरे दमखम से मेरी चुदाई कर रहा था।

    लगभग पन्द्रह मिनट की चुदाई के दौरान मैं दो बार झड़ चुकी थी। विजय अब भी मस्त चुदाई कर रहा था। उसके धक्कों की स्पीड अब और ज्यादा खतरनाक होती जा रही थी। लण्ड चूत के अंदर फूलने लगा था। मेरा अनुभव मुझे बता रहा था कि अब विजय के गर्म गर्म वीर्य से मेरी चूत की प्यास बुझने वाली है।

    मुझे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा और आठ दस धक्कों के बाद ही विजय के लण्ड से गर्म गर्म वीर्य मेरी चूत में भरने लगा।

    मैं तो जैसे जन्नत में पहुँच गई थी। मैंने विजय को अपनी टांगों में जकड़ लिया और उसके सर को भी अपनी चूचियों में दबा लिया और आनंद के सागर में गोते लगाने लगी। लण्ड से वीर्य अब भी रुक रुक कर निकल रहा था और मुझे आनन्दित कर रहा था।

    मैं विजय को और विजय मुझे पाकर बहुत खुश थे। पाँच दस मिनट ऐसे ही पड़े रहने के बाद हम दोनों अलग हुए।

    मैं अपने कपड़े पहनने लगी तो विजय ने मुझे रोक दिया और सोफे पर बैठे हुए मेरे नंगे बदन को अपने ऊपर खींच लिया। मैं भी उसकी गोद में बैठ गई। विजय मेरे पसीने से भीगे बदन को चाटने और चूमने लगा तो आग दुबारा भड़क उठी। नीचे गाण्ड पर भी विजय का लण्ड सर उठा कर अपनी दस्तक देने लगा था।

    विजय ने मुझे थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपना लण्ड मेरी चूत के मुहाने पर रख कर फिर से मुझे बैठा लिया जिससे उसका लण्ड एक बार फिर मेरी चूत की गहराई में उतर गया। पहले धीरे धीरे और फिर चुदाई अपने पूरे चरम पर पहुँच गई। अगले बीस पच्चीस मिनट कभी विजय मेरे ऊपर तो कभी मैं विजय के ऊपर आकर चुदाई का मज़ा लेते रहे।

    विजय को जरूरी काम से जाना था इसीलिए उसने रात को रुकने से मना कर दिया। पर मैं तो रात को भी विजय के साथ रंगीन करना चाहती थी। मैंने बहुत मिन्नत की तो उसने फोन करके रात को रुकने की अनुमति ले ली। मेरी तो मनचाही मुराद पूरी हो गई थी। फिर तो अगली सुबह तक ना तो विजय सोया और ना ही उसने मुझे सोने दिया। यहाँ तक की हम दोनों ने चुदाई के चक्कर में रात को खाना भी नहीं खाया। बस सिर्फ और सिर्फ चुदाई में खोये रहे।

    आज भी जब विजय मिलने आता है तो वो सब काम भूल कर सिर्फ और सिर्फ मेरी चुदाई में ही खोया रहता है।

    आपको मेरी चुदाई की यह दास्ताँ कैसी लगी जरूर बताना।
     
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