ऐश्वर्या की सुहाग रात - 2 - Suhagraat Hindi Stories

Discussion in 'Hindi Sex Stories' started by 007, Apr 27, 2016.

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    This story is part 2 of 2 in the series

    ऐश्वर्या की सुहाग रात

    "प्यारी ऐशह, ज़रा सब्र करना" कह के में लंड को चुत में फसा हुवा छोड कर उस के ऊपर ज़ुक गया और फ्रेंच किस करने लगा. होठों से होठों को चिपका के मानो में ने ऐशह का मुँह बॉटल की तरह सील कर दिया. एक धक्का ज़ोर से लगाया और में ने योनि पटल तोड़ के दो इंच लंड चुत में डाल दिया. ऐशह के मुँह से चीख निकल पड़ी जो में ने मेरे मुँह में ले ली. चुस्त चुत में लंड पिठा की टोपी खिशकगयी और खुला हुआ मट्ठा योनि की दीवालों को रगड़ ने लगा. में स्थिर हो गया और चुंबन छोड कर बोला, "शाबाश नीलू, शाबाश. वालेकम तो वुमनहुड. थोड़ा सब्र कर, अभी दर्द कम हो जाएगा और मज़ा आनी शुरू होगी. अभी थोड़ा ही लंड अंदर गया है लेकिन बाकी को जाने में तकलीफ़ नहीं होगी"

    ऐशह मुँह से बोली नहीं, योनि के संकोचन से जवाब दिया. में समाज गया की अब दर्द कम हो गया है. फिर भी में नेकहा, " मुझे बता देना जो दर्द होवे तो. में जल्दबाज़ी नहीं करूँगा" फिर से एक बार योनि को संकोच के उस ने जवाब दिया. बड़ी कठिनाई से में लंड को तुरंत ही चुत में घुसाड़ने से रोक पाया. हाथों के बाल में उँचा उठा और दोनो के पेट के बीच से लंड भोस के मिलाप को देखने लगा. में ने कहा, "ऐशह, देख तो सही, मेरा लंड तेरी चुत में कैषहे फिट बैठा है" अपना सर उठा के उस ने देखा तो घभरा गयी और बोली, "बाप रे, अभी इतना लंबा.लंबा और मोटा बाकी है ?"

    उस की बात सच थी. अभी तो मात्र दो इंच ही अंदर घुसा था, च्छे इंच सरीखा बहार था और घुसने को तैयार था. नीचे ज़ुक कर में ने ऐशह को किस किया और बोला, "डरना मत प्यारी, एक बार योनि पटल टूट जाय बाद में कोई तकलीफ़ नहीं होती. भगवान ने लड़कियों की चुत ही ऐशही बनाई है की उस में सारा लंड समा जाए. तू देखते रहेना."

    वो देखती रही और में ने आहिस्ता आहिस्ता लंड को चुत में पेलना शुरू किया. एक इंच, दो इंच, तीन, चार और पाँच इंच लंड को डाल के में रुका. क्यूँ की उस की चुत इतनी सिकुड़ी हुई थी और मेरे लंड पर इतना दबाव डाल रही थी की मुझे जल्दी से ज़र जाने का डर लगता था. ऐशह की योनि इतनी टाइट होगी ऐशहा मेने कभी सोचा भी ना था. रुकने के बाद लंड ने ठुमका लगाया. उस वक्त थोड़ा ज़्यादा मोटा हो जाने से चुत का मुँह ज़्यादा चौड़ा हुआ और ऐशह को दर्द हुआ. में ने पूछा, "दर्द होता है ? निकाल दम लंड को?"

    "नहीं, नहीं. कोई दर्द नहीं है. आप.आप." शर्म से वो आगे बोल नहीं पाई. उस ने मुँह मोड़ लिया और दाँत से होंठ कातने लगी.

    '.आप चोदना जारी रकखें, यही ना ?" में ने पूछा.

    आँखें धक कर सर हिला के उस ने हां कही.

    में ने फिर से लंड पेलना शुरू किया. च्छे इंच, सात इंच और आठ. पूरा लंड अंदर. लंड की टोपी खिशकगयी और नंगा मट्ठा ऐशह के गर्भाषी के साथ टकराया. उस की योनि ज़ोर से फटाके मारने लगी और उस के हिप्स ज़ोर से हिलने लगे. में उसे रोक लॅंड इस से पहेले मेरा संयम टूट गया. तुमल, तुमक कर के मेरे लंड ने जवाब दिया और वीर्य की पिचकारी माराते हुए ज़र पड़ा. ऐशह अभी ज़ारी नहीं थी. इतना जल्दी ज़र जाने से में ज़रा निराश हो गया.

    वीर्य चुत जाने के बाद भी में ने लंड को बहार निकाला नहीं. ताजूबि की बात ये थी की वो नर्म नहीं पड़ा, कड़क सा ही रहा. में ने ऐशहे ही हिप्स हिला के मन्स से मन्स घिसी और क्लाइटॉरिस को रगड़ा. इस से ऐशह को पता चला की सारा के सारा लंड अभी अंदर घुस चुका है. फिर से उस ने पेट के बीच से नीचे देखा और आनंद से हंस पड़ी. मुझे बहुत प्यारी लगी. "देखा ?" में ने पूछा. और उस पर चुंबनो की बरसात बरसा दी. ऐशह को पता नहीं चला की में ज़र चुका हूँ

    मेरा लंड फिर से पूरा तन गया. "अभी सही चुदाई शुरू होती है" कह कर में ने लंड को बहार खींचा. जब अकेला मट्ठा योनि में रहा तब में रुका और फिर से अंदर डाला. ऐशहे धीरी बढ़ता से पूरा लंड को इस्तेमाल करते हुए में ने ऐशह को कैबन पाँच मिनिट तक चोदा.

    पाँच मिनिट के बाद में ने धक्के की स्टाइल बदली. अब जल्दी से ज़र पड़ने का मुझे डर नहीं था इसी लिए आराम से चोद सकता था. नयी स्टाइल में इस तरह चोदने लगा: दो इंच अंदर, एक इंच बहार; फिर दो इंच अंदर, एक इंच बहार-ऐशहे हर एक धक्के में एक एक इंच लंड अंदर घुसटा चले. बहार निकालते वक्त भी ऐशहा ही: दो इंच बहार, एक इंच अंदर; दो इंच बहार, एक इंच अंदर. आठ धक्के अंदर घुसादने के वास्ते और आठ बहार निकालने के वास्ते. बीस मिनिट तक यूँ आहिस्ता आहिस्ता में ने ऐशह को चोदा.

    अब तक की चुदाई से ऐशह काफ़ी एग्ज़ाइट हो गयी थी. घड़ी घड़ी उस के बदन पर रों ए खड़े हो जाते थे. घड़ी घड़ी आँखें ज़ोर से बंद हो जाती थी. चाहेरा लाल हो गया था. स्तन पर अरेवला के साथ निपल्स कड़ी हो कर उभर आई थी. योनि में से काम रस बह रहा था और योनि फट फट फटाके मर रही थी. में समाज गया की वो अब ज़रने को तैयार है. एक बार फिर में ने लंड को उसकी योनि की गहराई में उतार दिया और मेरी मन्स से क्लाइटॉरिस को ज़ोर से रगड़ दिया. योनि ने लॅप लॅप करके लंड को चूसा और ऐशह का बाँध चुत गया. उस का बदन अकड़ गया, मुँह से "आ.ओह,ओह,ओह.सीईईई.सीईइ.आ" आवाज़ निकल पड़ी और वो मुझे ज़ोर से चिपक गयी. उस का ऑर्गॅज़म पूरी तीस सेकेंड चला. दरमियाँ चुत में लंड को दबाए हुए में स्थिर रहा.

    ऑर्गॅज़म के बाद ऐशह की योनि शांत हुई तब में ने फिर से चोदना शुरू किया. अब योनि थोड़ी सी नर्म हुई थी, जिस से वो अब आसानी से लंड ले सकती थी. लंबे, उन्ड़े और तेज धक्के से में ने उस को चोदा. उस की चुत अब वारम वार संकोचन करने लगी और लंड को चूसने लगी मानो की लंड को पकड़ रखने का प्रयास कराती हो. में ने उस के घुतनो नीचे हाथ डाल कर कंधे तक उठाए जिस से उस की भोस ज़्यादा ऊपर उठ आई और पूरा लंड अंदर घुसने लगा. तेज़ी से चलते मेरे धक्के का जवाब वो अपने हिप्स हिला के देने लगी. मुझे ऐशहा महसूस हुआ की मेरे सारे लंड में से काम रस ज़र रहा है. जब मुझे लगा की मेरा लंड फट जायगा तब में अपने आप को रोक नहीं पाया. "अया..आ..सी..सी. ..ओह.ओह.ऐशह, पकड़ मुझे..अयाया" कहते हुए में ज़रा. वीर्य की पाँच सात पिचकारी से लंड ने योनि च्चालका दी. ऑर्गॅज़म के अंतिम ज़टके के साथ में शिथिल हो कर उस के ऊपर ढाल पड़ा.

    ऐशह ने अपने पाव लंबे किए और मेरी पीठ सहलाने लगी. चूमबन कर के में ने कहा, "ऐशह, तुज़े चोदने में इतनी मज़ा आएगी ऐशहा में ने सोचा भी ना था. लेकिन तुज़े दर्द तो नहीं हू ना ? आवेश में आ कर में भूल ही गया था की तू पहेली बार चुदया रही है."

    मेरे गले में हाथ डाल कर वो बोली, "प्यारे, दर्द हुवा हो तो इस का मुझे ख्याल नहीं है. और दर्द मीठा भी है, आप का दिया जो है." में खुश होकर किस पर किस करने लगा.

    मेरा लंड नर्म हो ने लगा था लेकिन चुत से निकाला नहीं था. थोड़ी देर बाद ऐशह ने पाव उठाके मेरी कमर से लिपटाए और योनि में संकोचन किया. ठुमका ले के लंड ने जवाब दिया. जैशहे की लंड चुत की बात चित चल पड़ी हो. थोड़ा सा नर्म हुवा लंड फिर से टाइट होने लगा. में ने पूछा, "ऐशह, ये क्या ? ये क्या कर रही हो ? सच मच तुज़े दर्द नहीं होता है ? तुज़े परेशान करके में मज़ा लेना नहीं चाहता."

    "सच्ची, अब कोई दर्द नहीं है. वो शुरू कीजिए ना" कहते हुए उस ने शरमा के मुँह मोड़ लिया.. में ने उसका चाहेरा घुमा के फ्रेंच किस की और धक्के लगाने शुरू किए. इस बार हम दोनो ने आराम से चुदाई की जो आधा घंटा चली. ऐशह दो बार झडी और में एक बार.

    मेरे वीर्य से ऐशह की चुत छलक गयी थी. नर्म लॉड को निकाल के में बाथरूम में गया और सफाई की. गीला टवल से में ने ऐशह की भोस पोंच्छ कर सॉफ किया. एक दूजे को लिपट कर हम सो गये




    सुबह पाँच बजे ऐशह मेरे पहेलू से निकल कर बाथरूम में गयी. उस ने सोचा होगा के में सोया हुआ हूँ लेकिन में जगा हुआ था और आँखें मूंद कर पड़ा था. मेरा नर्म लोडा पेट पर पड़ा था. में और ऐशह दोनो अभी नग्न थे.

    बात रूम से निकल कर ऐशह पलंग के पास आ के खड़ी रही, लेती नहीं. वो मेरा बदन देखने लगी ख़ास तौर पर लॉड को. आवरनाणीय आनंद देनेवाला ये अंग को उस ने कभी देखा नहीं था. पालग पर बैठ के उस ने लॉड को हाथ में लिया और इधर उधर घुमा के देखने लगी. मेरे वृषण को भी हथेली में उठा देखे. शायद उसे पता नहीं था की लॉड की टोपी खिसका के मट्ठा खुला किया जा सकता है. उस की कोमल उंगलिओ के स्पर्श से लोडा उभर ने लगा और देखते देखते में तन कर लंड बन गया. ऐशहे उठता हुआ लंड देखना उस के लिए पहला प्रसंग था. देखने में वो इतनी मशगूल थी की में ने आँखें खोली और लंड का ठुमका लगाया फिर भी उसे पता ना चला की में जगह गया हूँ.

    "पसंद आया ?" में ने धीरे से पूछा.

    वो चोंक उठी. लंड को छोड के शर्म की मारी मूज़ से मुँह फिरा के बैठ गयी. में भी बैठ गया, उस को आलिंगन में लिया और किस कर के बोला, "तेरा ही है ये लंड. इस के साथ तू चाहे सो कर सकती हो. लेकिन इतना बता की तुम्हे पसंद आया की नहीं." उस ने मेरे सिने में अपना चाहेरा छुपा दया और सर हिला के हां कही. मेरी छोटी छोटी घुंडीओ के साथ उसकी उगलियाँ खेलने लगी. किस करते हुए में ए स्तन टटोले और दबाए. चाहेरा चचपा रख के वो धीरे से बोली, "फिर कब किया जा सकता है वो ?"

    "वो मैने क्या ?"

    "आप जाने तो है.."

    "जानता तो हूँ, लेकिन तेरे मुँह से सुनना चाहता हूँ."

    "मुझे शर्म आती है बोलने में"

    "अब शर्म कैशही ? अब तो में ने तेरे स्तन, तेरी भोस, तेरे चूतड़ सब देख लिया है और तू ने भी मेरा लंड देख लिया है. याद कर, एक बार तू बोली भी थी."

    थोड़ा हिचकिचाहट के बाद वो बोली, "वो मैने .छो.छो दा..ना"

    "अब बोल, प्यारे, आप के लंबे लंड से मुझे चुत भर के छोड़िए"

    "ना बाबा."

    "ना बाबा ? अच्च्छा तो रहेने दे. चलो सो जाएँ" में ने खाली कहा.

    मूज़ से लिपट कर कान में मुँह डाल कर वो बोली, "प्यारे, आप के लंबे.लंबे.लॅंड.लंड." आगे बोलने के बजाय वो खिलखिलत हंस पड़ी.

    "हाँ, हाँ बोल..लंड से."

    "..लंड से मुझे छू..चुत भर के छोड़िए"

    शर्म से उस ने अपना चाहेरा छुपा दिया. में इन हाथ हटाए और चाहेरा उठाया तो वो आँखें बंद कर मुस्कराने लगी. फ्रेंच किस कर के में ने कहा, "देखा ? बोलना इतना कठिन नहीं है. फिर से सूनाओ तो एक बार."

    "प्यारे, आप के लंबे लंड से मुझे चुत भर के छोड़िए"

    ऐशह के मुँह से चोदना सुन कर मेरा लंड ओर तन गया और चोदने को अधीर बन गया. मुझे निमंत्रण की ज़रूरात नहीं थी. मुँह पर स्तन पर और पेट पर चुंबन करते हुए में ने क्लाइटॉरिस को जीभ से टटोला और एक उँगई चुत में डाली. क्लाइटॉरिस तो कड़ी हो गयी थी और चुत गीली गीली थी लेकिन योनि पटल का घाव अभी नया नया था. क्लाइटॉरिस को चुसते हुए उंगली से ही में ने ऐशह को थोड़ी देर चोदा.

    "ऐशहा करतें हैं, " में ने कहा, "में पीठ के बाल लेट जाता हूँ तू मेरे ऊपर आजा और लंड को चुत में पेल"

    "मुझे आएगा ?"

    "क्यूँ नहीं ? में बताओन वैशहे करना"

    में ने पाव लंबे कर के ऐशह को जाँघ पर बिठया, उस की जांघें चौड़ी कर के. लंड को खड़ा पकड़ के में ने कहा "अब तू चुत को लंड पर ला के आहिस्ता आहिस्ता लंड को अंदर ले"

    ऐशह को ज़्यादा शिक्षा की ज़रूरात ना थी. धीरे से हिप्स उतार के उस ने सारा लंड चुत में ले लिया. थोड़ा रुकने के बाद वो एक एक्सपर्ट की तरह हिप्स को हिला कर मुझे चोदने लगी. नीचे से धक्के देते हुए में ने सहकार दिया. वो अपने हिप्स को ऐशहे घुमाती थी की उस की क्लाइटॉरिस लंड के साथ ज़्यादा घिसने पाए. कभी कभी मन्स से मन्स सटा के पूरा लंड चुत में घुसा के वो बैठ जाती थी. उस वक्त लंड का मोटा मूल योनि के मुँह को ज़्यादा चौड़ा किए देता था और ऐशह को थोड़ा सा दर्द भी होता था लेकिन वो परवाह नहीं कराती थी.

    पाँच मिनिट में वो तक के मेरे ऊपर ढाल गयी. लेकिन उस की योनि ताकि नहीं थी. लॅप लॅप करके उस ने लंड को चूसा तो लंड और तन गया. मेने ऐशह को बाहों में ले कर करवट बदली और में ऊपर आ गया. उस की जांघें चौड़ी कर के मेरी कमर आस पास लगाई. फिर से योनि ने लंड को चूसा. में ने ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए. ठप्प, ठप्प आवाज़ ए मेरी मन्स उस की भोस को पीतने लगी.

    ऐशह को ज़्यादा मज़ा आए इस लिए में ने टेचननिक बदली. धक्के माराते माराते जब में ज़रने को हो जाता तब रुक जाता और लंड पूरा बहार निकल लेता. लंड शांत होने पर फिर से चुत में घुसा के धक्के मारना शुरू कर देता. ऐशहे सात बार चालू-बाँध, चालू-बाँध कर के मेने ऐशह को चोदा. दरमियाँ वो दो बार ज़ारी. आख़िर में भी ज़रा. लंड को चुत की गहराई में उंड़ेल कर चार पाँच पिचकारी मर कर योनि को वीर्य से च्चालका दी. सफाई की परवाह किए बिना लंड को निकले बिना एक दूजे से लिपट कर हम सो गये.

    सुहाग रात अभी ख़त्म हुई नहीं थी.

    सुबह सात बजे मे जब जगा तब ऐशह गहेरी नींद में थी. में ने स्तन से खेलना शुरू किया. उस की आँख खुली तब तक लंड तन गया था.

    "हो जाय एक बार फिर ?" उस ने पूछा.

    "क्या हो जाए ?"

    "धात्ट.मेरे से सुनना चाहते हेँ ?"

    "ऐशहा ही कुच्छ."

    "अच्च्छा जी, हो जाय चुदाई का एक और राउंड ?"

    "प्रेम से हो जाय. लेकिन इस बार कुच्छ नया करेंगे. हाँ, ज़राते वक्त लंड तन के कैशहा दिखता है वो तू ने देखना है ?"

    "वो कैषहे ?"

    "में बताता हूँ. मेरा वीर्य तेरे चाहेरे पर पड़े तो तुज़े कोई एतराज तो नहीं है ना ?"

    "नहीं. आप का वीर्य कहीं भी गिरे मुझे पसंद ही है"

    "तो देख , तू लेट जा.."

    वो लेट गयी. में अपने घुतनो पर वजन लिए उस के सिने पर बैठा. में ने कड़क लंड को उस के सिने पर रक्खा ओए उस के स्तनों को एकाट्ते करने लो कहा. अपने दोनो हाथों से उसने स्तन के बीच लंड को पकड़ लिया. उस के स्तन काफ़ी बड़े थे जिस से दोनो के बीच योनि जैशहा मार्ग बन गया. में ने कमर हिया के चोदना शुरू किया. में जब लंड को नीचे तरफ खींचता था तब टोपी उतार कर लंड के मत्थे को धक देती थी. जब लंड को घुसेड़ता था तब टोपी ऊपर चड़ जाती थी और लंड का खुला मट्ठा ऐशह के चाहेरे के पास जा पहॉंचता था. मुझे चुत चोदने जेसेही ही मज़ा आती थी. अपना सर उठाए नीलू लंड का आना जाना देख रही थी और स्तनों को ज़्यादा कम डबाते हुए मुझे योनि महसूस करवाती थी. में ने धक्के की रफ़्तार बधाई. लंड ज़्यादा तन गया, मट्ठा अभी फट जाय ऐशहा हो गया. मेरे वास्ते ये कुच्छ नया नहीं था. हर एक लड़के ने हॅस्ट मैथुन के दौरान अपने लंड को ऐशहे तन जाते हुए देखा ही होता है. ऐशह आश्चर्य से देखती रही और में ज़रा. उस के चाहेरे पर मेरे वीर की बरसात हुई. उस के बदन में भी ज़ूरज़ुरी हो गयी जिस से में जान गया की वो भी मेरे साथ ही ज़ारी थी.

    हम दोनो फिर से सो गये और दस बजे जागे. स्नान इत्यादि कर के नीचे गये. चाय-नाश्ता लिए मुस्कुराती हुई सोमी हमारा इतेज़ार कर रही थी.

    "गुड मॉर्निंग ?" उस ने जाई से की ऐशह से पच्छा.

    ऐशह ने शरमा के जवाब दिया, "गुड मॉर्निंग, गुड मॉर्निंग... टिल मॉर्निंग."

    में कुच्छ समझ़ा नहीं. सोमी ऐशह से लिपट गयी और दोनो खिलखियात हंस पड़ी.

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